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________________ नामाधिकारनिरूपण १९५ अलक्तत, अलाबु, कुसुम्भक, अभाषक आदि शब्दगत 'अः''कु' प्रत्यय प्रतिपक्ष का बोध कराने वाले होने से इनके संयोग से बनने वाले पदों की प्रतिपक्षनिष्पन्नता सुगम है। नोगौणपदनिष्पन्न से इसे पृथक् मानने का कारण यह कि नोगौणपद में तो नामकरण का कारण कुन्तादि के प्रवृत्तिनिमित्त का अभाव है। जबकि इसमें प्रतिपक्षधर्मवाचक शब्द मुख्य है। ग्राम आदि पदों की व्याख्या-ग्राम-जहां पर बुद्धि आदि गुण ग्रसे जाते हैं अर्थात् गुणों में हीनता आती है, गुणों का विकास नहीं होता अथवा जिसके चारों ओर कांटों आदि की बाड़ हो। आकर स्वर्ण आदि धातुओं, रत्नों और खनिज पदार्थों की खाने हों। नगर—अठारह प्रकार के राजकर (टैक्स) से जो मुक्त हो। खेड-जिसके चारों ओर मिट्टी का कोट बनाया गया हो। कर्बट-कुत्सित नगर—जहां जीवनोपयोगी साधनों का अभाव हो। मडम्ब जिसके आसपास ढाई कोस तक कोई गांव न हो। द्रोणमुख–जो जल और स्थल रूप आवागमन के मार्गों से जुड़ा हुआ हो। पट्टन–(पत्तन) जहां सभी प्रकार की वस्तुएं मिलती हों। आश्रम–तापसों का आवासस्थान । संवाह अनेक प्रकार के लोगों से व्याप्त स्थान अथवा पथिकों का विश्रामस्थान । सन्निवेश सार्थवाहों का निवासस्थान। प्रधानपदनिष्पन्ननाम २६८. से किं तं पाहण्णयाए ? पाहण्णयाए असोगवणे सत्तवण्णवणे चंपकवणे चूयवणे नागवणे पुन्नागवणे उच्छुवणे दक्खवणे सालवणे । से तं पाहण्णयाए । [२६८ प्र.] भगवन् ! प्रधानपदनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [२६८ उ.] आयुष्मन् ! प्रधानपदनिष्पन्ननाम का स्वरूप इस प्रकार है। जैसे अशोकवन, सप्तपर्णवन, चंपकवन, आम्रवन, नागवन, पुन्नागवन, इक्षुवन, द्राक्षावन, शालवन, ये सब प्रधानपदनिष्पन्ननाम हैं। विवेचन— यह सूत्र प्रधानपदनिष्पन्ननाम का सूचक है। जिसकी प्रचुरता बहुलता हो वह यहां प्रधान कहा गया है और उस प्रधान की अपेक्षा निष्पन्ननाम प्रधानपदनिष्पन्ननाम कहलाता है। अशोकवन आदि उदाहरणों में अशोकवन में अन्य वृक्षों का सद्भाव तो है, किन्तु अशोक वृक्षों की प्रचुरता होने से उस वन को 'अशोकवन' इस नाम से सम्बोधित किया जाता है। सप्तपर्णवन आदि नामों के लिए भी यही कारण जानना चाहिए। गौणनाम से प्रधानपदनिष्पन्ननाम में यह अन्तर है कि गौणनाम में तो क्षमादि गुण से क्षमण आदि शब्दों का वाच्यार्थ सम्पूर्ण रूप से उस नाम वाले में घटित होता है, जबकि प्रधानपदनिष्पन्ननाम में उस-उस नाम के वाच्यार्थ की मुख्यता और शेष की गौणता रहती है। किन्तु गौणता के कारण उनका अभाव नहीं होता है। जैसे अशोक वृक्षों की प्रचुरता होने पर भी अन्य वृक्षों का अभाव नहीं है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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