________________
अनुयोगद्वारसूत्र
सूत्रकृतांगसूत्र के आठवें अध्ययन की पहली गाथा में 'वीरियं' पद होने से उस अध्ययन का नाम 'वीरियं' रखा तथा नौवें अध्ययन की पहली गाथा में 'धम्म' पद होने से वह अध्ययन 'धम्मज्झयणं' नाम वाला है और ग्यारहवें अध्ययन की प्रस्तावना की प्रथम गाथा में 'मग्ग' शब्द होने से उस अध्ययन का नाम 'मग्गज्झयणं' है।
१९४
सूत्रकृतांगसूत्र के बारहवें अध्ययन के प्रारंभ की गाथा में 'समोसरणाणिमाणि' पद है। इसी के आधार से उस अध्ययन का नाम ‘समोसरणज्झयणं' रख लिया गया तथा पन्द्रहवें अध्ययन की पहली गाथा में 'जमईयं' पद होने से अध्ययन का नाम 'जमईयं' हैं।
इसी प्रकार अन्य नामों की आदानपदनिष्पन्नता समझ लेना चाहिए ।
प्रतिपक्षपदनिष्पन्ननाम
२६७. से किं तं पडिवक्खपदेणं ?
पडिवक्खपदेणं णवेसु गामाऽऽगर - नगर - खेड - कब्बड - मडंब - दोणमुह-पट्टणाऽऽसमसंवाह - सन्निवेसेसु निविस्समाणेसु असिवा सिवा, अग्गी सीयलो, विसं महुरं, कल्लालघरेसु अंबिलं साउयं, जे लत्तए से अलत्तए, जे लाउए से अलाउए, जे सुंभए से कुसुंभए, आलवंते विवलीयभासए । से तं पडिपक्खपदेणं ।
[२६७ प्र.] भगवन् ! प्रतिपक्षपद से निष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ?
[२६७ उ.] आयुष्मन् ! प्रतिपक्षपदनिष्पन्ननाम का स्वरूप इस प्रकार है—
नवीन ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टन, आश्रम, संबाह और सन्निवेश आदि में निवास करने अथवा बसाये जाने पर अशिवा (शृगाली, सियारनी) को 'शिवा' शब्द से उच्चारित करना। (कारणवशात्) अग्नि को शीतल और विष को मधुर, कलाल के घर में 'आम्ल' के स्थान पर ' स्वादु ' शब्द का व्यवहार होना । इसी प्रकार रक्त वर्ण का हो उसे अलक्तक, लाबु (पात्र - विशेष) को अलाबु, सुंभक ( शुभ वर्ण वाले) को कुसुंभक और विपरीत भाषक—–भाषक से विपरीत अर्थात् असम्बद्ध प्रलापी को 'अभाषक' कहना ।
यह सब प्रतिपक्षपदनिष्पन्ननाम जानना चाहिए।
विवेचन —— सूत्र में प्रतिपक्षपदनिष्पन्ननाम का स्वरूप उदाहरण देकर समझाया है।
प्रतिपक्ष — विवक्षित वस्तु के धर्म से विपरीत धर्म । इस प्रतिपक्ष के वाचक पद से निष्पन्न होने वाले नाम को प्रतिपक्षपदनिष्पन्ननाम कहते हैं । उदाहरणार्थ — मंगल के निमित्त शृगाली के लिए 'अशिवा' के स्थान पर 'शिवा' शब्द का प्रयोग करना ।
इसका कारण यह है कि शब्दकोश में 'शिवा' शृगाली वाचक नाम तो है किन्तु उसका देखना या बोलना अशिव-अमंगल - अशुभ रूप होने से मांगलिक प्रसंगों पर अशिवा के स्थान पर शिवा शब्द का प्रयोग किया जाता
है।
इसी प्रकार मंगल-अमंगल विषयक लोकमान्यता के अनुसार अग्नि के लिए शीतल, विष के लिए मधुर और अम्ल के लिए स्वादु शब्दप्रयोगों के विषय में जानना चाहिए। शीतल आदि शब्द वस्तुगत गुण-धर्मों से विपरीत धर्मबोधक होने पर भी अग्नि आदि के लिए प्रयोग किये जाते हैं।