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अनुयोगद्वारसूत्र विवेचन— प्रस्तुत सूत्र दसनाम की व्याख्या की भूमिक रूप है। यहां बतलाया है कि विभिन्न आधारों को लेकर वस्तु का नामकरण किया जा सकता है। प्रस्तुत में दस आधार कहे गए हैं। उनका आशय यह हैगौणनाम
२६४. से किं तं गोण्णे ?
गोण्णे खमतीति खमणो, तपतीति तपणो, जलजीति जलणो, पवतीति पवणो । से तं गोण्णे।
[२६४ प्र.] भगवन् ! गौण—गुणनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [२६४ उ.] आयुष्मन् ! गौण - गुणनिष्पन्ननाम का स्वरूप इस प्रकार है
जो क्षमागुण से युक्त हो उसका 'क्षमण' नाम होना, जो तपे उसे तपन (सूर्य), प्रज्वलित हो उसे ज्वलन (अग्नि), जो पवे अर्थात् बहे उसे पवन कहना। यह गौणनाम का स्वरूप है।
विवेचन— सूत्र में कतिपय उदाहरणों के द्वारा गौणनाम का स्वरूप बतलाया है। गुणों के आधार से जो संज्ञायें निर्धारित होती हैं, उन्हें गौणनाम कहते हैं। यह यथार्थनाम भी कहलाता है।
- उदाहरण के रूप में जिन नामों का उल्लेख किया है, वे क्षमा, तपन, ज्वलन, पवन रूप नाम.के अनुसार गुणों वाले हैं। इसलिए उनके नाम गुणनिष्पन्न होने से गौण यथार्थ नाम हैं। नोगौणनाम
२६५. से किं तं नोगोण्णे ?
नोगोण्णे अकुंतो सकुंतो, अमुग्गो समुग्गो, अमुद्दो समुद्दो, अलालं पलालं, अकुलिया सकुलिया, नो पलं असतीति पलासो, अमातिवाहए मातिवाहए, अबीयवावए बीयवावए, नो इंदं गोवयतीति इंदगोवए । से तं नोगोण्णे ।।
[२६५ प्र.] भगवन् ! नोगौणनाम का क्या स्वरूप है ? [२६५ उ.] आयुष्मन् ! नोगौणनाम का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिएकुन्त— शस्त्र-विशेष (भाला) से रहित होने पर भी पक्षी को 'सकुन्त' कहना। मुद्ग— मूंग धान्य से रहित होने पर भी डिबिया को 'समुद्ग' कहना। मुद्रा— अंगूठी से रहित होने पर भी सागर को 'समुद्र' कहना। लाल- लार से रहित होने पर भी विशेष प्रकार के घास को 'पलाल' कहना। कुलिका– भित्ति (दीवार) से रहित होने पर भी पक्षिणी को 'सकुलिका' कहना। पल- मांस का आहार न करने पर भी वृक्ष-विशेष को 'पलाश' कहना। माता को कन्धों पर वहन न करने पर भी विकलेन्द्रिय जीवविशेष को 'मातृवाहक' नाम से कहना। बीज को नहीं बोने वाले जीवविशेष को 'बीजवापक' कहना। इन्द्र की गाय का पालन न करने पर भी कीटविशेष का 'इन्द्रगोप' नाम होना। इस प्रकार से नोगौणनाम का स्वरूप है।