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________________ य १५६ अनुयोगद्वारसूत्र जाते हैं केवलज्ञान में अन्तर्हित हो जाते हैं, तब क्षीणकेवलज्ञानावरण ऐसा जो नाम होता है वह नाम, स्थापना या द्रव्यनिक्षेप रूप नहीं होता किन्तु भावनिक्षेप रूप होता है। इसी प्रकार शेष नामों के लिए भी जानना चाहिए। यद्यपि सूत्रोक्त नामों का वर्गीकरण आवश्यक नहीं है, सभी नाम निष्कर्मा आत्मा के बोधक हैं। तथापि सुगमबोध के लिए उन नामों के तीन वर्ग इस प्रकार हो सकते हैं १. प्रथम वर्ग उन नामों का है जिनसे कर्मों के सर्वथा क्षीण होने पर आत्मा को संबोधित किया जाता है। ये नाम हैं उत्पन्नज्ञान-दर्शनधारी, अर्हत्, जिन, केवली। २. दूसरे वर्ग में वे नाम हैं जो पांच प्रकार के ज्ञानावरणकर्म, नौ प्रकार के दर्शनावरणकर्म, दो प्रकार के वेदनीयकर्म, अट्ठाईस प्रकार के मोहनीय कर्म, चार प्रकार के आयुष्यकर्म, बयालीस प्रकार के नामकर्म, दो प्रकार के गोत्रकर्म और पांच प्रकार के अंतरायकर्म के क्षय से निष्पन्न हैं। इन नामों का उल्लेख क्षीण-आभिनिबोधिकज्ञानावरण से अन्तरायकर्मविप्रमुक्त पद तक किया है तथा सर्वथा कर्मप्रकृतियों के क्षय से सिद्धावस्था प्राप्त होने से यह कथन सिद्ध भगवान् की अपेक्षा जानना चाहिए। ३. तीसरे वर्ग के नामों में सर्वथा कर्मक्षय होने पर सम्भव आत्मा की अवस्था का निरूपण किया है। इसके द्योतक शब्द सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त, अंतकृत और सर्वदुःखप्रहीण हैं। पदसार्थक्य- सूत्रगत सभी पद पारिभाषिक हैं। इनमें से अधिकांश के लक्षण पंचसंग्रह, कर्मप्रकृति आदि कर्मग्रन्थों से जानकर और उनके साथ क्षीण शब्द जोड़ने पर ज्ञात हो सकते हैं। किन्तु कुछ पद ऐसे हैं कि पर्यायवाची होने से उनमें शब्दनय की अपेक्षा भेद नहीं है किन्तु समभिरूढनय की अपेक्षा उनके वाच्यार्थ में भेद हो जाता है। ऐसे पदों का यहां उल्लेख किया जाता है— अणावरणे निरावरणे खीणावरणे- वर्तमान में आत्मा अविद्यमान आवरणवाला होने से अनावरण रूप है, किन्तु भविष्य में पुनः कर्मसंयोग होने की सम्भावना का निराकरण करने के लिए निरावरण पद दिया है और कर्मसंयोग न होना तभी सम्भव है जब कर्म निःसत्ताक हो जाएं। यह बताने के लिए क्षीणावरण पद दिया है। अवेयणे निव्वेयणे खीणवेयणे- अवेदन का अर्थ है वेदना (अनुभूति) रहित किन्तु 'अ' उपसर्ग अल्प, ईशद् अर्थ में प्रयुक्त होने से अवेदन का अर्थ अल्पवेदन भी हो सकता है। अतः इस असंगत अर्थ का निराकरण करने के लिए 'निर्वेदन' पद प्रयुक्त किया है। आशय यह कि सर्वथा वेदनारहित को निवेदन समझना चाहिए और वर्तमान की यह निर्वेदन रूप अवस्था कालान्तरस्थायी भी है, इसका बोधक क्षीणवेदन' पद है। अमोहे निम्मोहे खीणमोहे- अमोह अर्थात् अपगत मोहनीयकर्म वाला। परन्तु अमोह का एक अर्थ अल्प मोह वाला भी संभव होने से उसका निराकरण करने के लिए 'निर्मोह' पद दिया है। निःशेष रूप से मोहकर्म रहित ऐसा निर्मोही अमोह पद का वाच्य है। ऐसा निर्मोही भी कालान्तर में मोहोदययुक्त बन सकता है, जैसे उपशांतमोहवाला। इस आशंका को निर्मूल करने के लिए क्षीणमोह पद दिया है कि अपुनर्भव रूप मोहोदयवाला जीव अमोह, निर्मोह नाम से यहां ग्रहण किया गया है। इसी प्रकार अणामे, निण्णामे, खीणनामे, अगोए, निग्गोए, खीणगोए, अणंतराए, णिरंतराए, खीणंतराए पदों की सार्थकता का विचार नाम, गोत्र और अन्तराय कर्म की अपेक्षा कर लेना चाहिए।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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