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________________ १२२ अनुयोगद्वारसूत्र (४) से किं तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुव्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुखवू । सेतं अणाणुपुव्वी । [२०१-४ प्र.] भगवन् ! अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०१-४ उ.] आयुष्मन् ! अनानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार जानना कि एक से लेकर असंख्यात पर्यन्त एक-एक की वृद्धि द्वारा निष्पन्न श्रेणी में परस्पर गुणाकार करने से प्राप्त महाराशि में से आदि और अंत के दो भंगों से न्यून भंग अनानुपूर्वी हैं। विवेचन—– सूत्र में औपनिधिकी कालानुपूर्वी का वर्णन किया गया है। सूत्र का आशय स्पष्ट है कि आदि से प्रारंभ कर अंत तक का क्रम पूर्वानुपूर्वी, व्युत्क्रम से अन्त से प्रारंभ कर आदि तक का क्रम पश्चानुपूर्वी तथा अनुक्रम एवं व्युत्क्रम से आदि और अंत के दो स्थानों को छोड़कर शेष सभी बीच के भंग अनानुपूर्वी रूप हैं। आदि भंग पूर्वानुपूर्वी और अंतिम भंग पश्चानुपूर्वी रूप होने से इनको ग्रहण न करने का कथन किया है। अब प्रकारान्तर से औपनिधिकी कालानुपूर्वी का वर्णन करते हैं । औपनिधिकी कालानुपूर्वी : द्वितीय प्रकार २०२. (१) अहवा ओवणिहिया कालाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता । तं जहा— पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३ । [२०२ - १] अथवा औपनिधिकी कालानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है। जैसे—१. पूर्वानुपूर्वी, २ . पश्चानुपूर्वी, ३. अनानुपूर्वी । (२) से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वी समए आवलिया आणापाणू थोवे लवे मुहुत्ते दिवसे अहोरत्ते पक्खे मासे उर्दू अयणे संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससतसहस्से पुव्ळंगे पुव्वे तुडियंगे तुडिए अडडंगे अडडे अववंगे अववे हूहुयंगे हूहुए उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे णलिणंगे णलिणे अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे अउयंगे अउए नउयंगे नउए पउयंगे पउए चूलियंगे चूलिए सीसपहेलियंगे सीसपहेलिया पलिओवमे सागरोवमे ओसप्पिणी उस्सप्पिणी पोग्गलपरियट्टे तीतद्धा अणागतद्धा सव्वद्धा । से तं व्वा । [२०२-२ प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०२-२ उ.] आयुष्मन् ! समय, आवलिका, आनप्राण, स्तोक, लव, मुहूर्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, वर्षशत, वर्षसहस्र, वर्षशतसहस्र, पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अडडांग, अडड, अवघांग, अवव, हुहुकांग, हुहुक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनिपुरांग, अर्थनिपुर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका, पल्योपम, सागरोपम, अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी, पुद्गलपरावर्त, अतीताद्धा, अनागताद्धा, सर्वाद्धा रूप क्रम से पदों का उपन्यास करना काल सम्बन्धी पूर्वानुपूर्वी है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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