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________________ आनुपूर्वीनिरूपण ९७ अनुगमगत अन्तरप्ररूपणा १५५. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाणमंतरं कालतो केवचिरं होति ? तिण्णि वि एगं दव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं असंखेनं कालं, णाणादव्वाइं पडुच्च णत्थि अंतरं । [१५५ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्यों का काल की अपेक्षा अन्तर कितने समय का [१५५ उ.] आयुष्मन् ! तीनों (आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों) का अन्तर एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल का है किन्तु अनेक द्रव्यों की अपेक्षा अन्तर नहीं है। विवेचन— सूत्र में एक और अनेक द्रव्यों की अपेक्षा अन्तरप्ररूपणा की गई है। प्रश्नोत्तर में भिन्नता क्यों?— यद्यपि प्रश्न तो आनुपूर्वी द्रव्यों को आश्रित करके किया है लेकिन उत्तर में 'तिण्णि वि' तीनों को ग्रहण इसलिए किया है कि इन तीनों द्रव्यों का अन्तर समान है। जिसका भाव यह है कि जिस समय कोई एक आनुपूर्वी द्रव्य किसी एक विवक्षित क्षेत्र में एक समय तक अवगाढ रह कर किसी दूसरे क्षेत्र में अवगाहित हो जाता है और फिर पुनः अकेला या किसी दूसरे द्रव्य से संयुक्त होकर उसी विवक्षित आकाशप्रदेश में अवगाढ होता है तो उस समय उस एक आनुपूर्वी द्रव्य का अन्तरकाल-विरहकाल जघन्य एक समय है तथां जब वही द्रव्य अन्य क्षेत्र-प्रदेशों में असंख्यात काल तक अवगाढ रह कर मात्र उसी अथवा अन्य द्रव्यों से संयुक्त होकर पूर्व के ही अवगाहित क्षेत्रप्रदेश में अवगाहित होता है तब उत्कृष्ट विरहकाल असंख्यात काल होता है। अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के लिए भी इसी प्रकार जानना चाहिए। विरहकाल अनन्तकालिक क्यों नहीं?— यद्यपि द्रव्यानुपूर्वी में एक द्रव्य की अपेक्षा उत्कृष्ट विरहकाल अनन्तकाल का बताया है। परन्तु क्षेत्रानुपूर्वी में असंख्यात काल का इसलिए माना गया है कि द्रव्यानुपूर्वी में तो विवक्षितद्रव्य से दूसरे द्रव्य अनन्त हैं। अत: उनके साथ क्रम-क्रम से संयोग होने पर पुनः अपने स्वरूप की प्राप्ति में उसे अनन्त काल लग जाता है। परन्तु यहां (क्षेत्रानुपूर्वी में) विवक्षित अवगाहक्षेत्र से अन्य क्षेत्र असंख्यात प्रदेश प्रमाण ही है। इसलिए प्रतिस्थान में अवगाहना की अपेक्षा उसकी संयोगस्थिति असंख्यात काल है। जिससे विवक्षित प्रदेश से अन्य असंख्यात क्षेत्र में परिभ्रमण करता हुआ द्रव्य पुनः उसी विवक्षित प्रदेश में अन्य द्रव्य से संयुक्त होकर या अकेला ही असंख्यात काल के बाद अवगाहित होता है। ___ नाना द्रव्यों की अपेक्षा अंतर क्यों नहीं?— सभी आनुपूर्वी द्रव्य एक साथ अपने स्वभाव को छोड़ते नहीं हैं । क्योंकि असंख्यात आनुपूर्वी द्रव्य सदैव विद्यमान रहते हैं। अतएव नाना द्रव्यों की अक्षा अंतर नहीं है। अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के अंतर का विचार भी इसी प्रकार जानना चाहिए। अनुगमगत भागप्ररूपणा १५६. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं सेसदव्वाणं कतिभागे होज्जा ? तिण्णि वि जहा दव्वाणुपुव्वीए ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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