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________________ ज्ञान के पांच प्रकार] [६३ तक, शेष तीन या चार चारित्र वाले उत्कृष्ट आठ समय तक लगातार सिद्ध हो सकते हैं। (८) बुद्धद्वार—बुद्धबोधित आठ समय तक, स्वयंबुद्ध दो समय तक, सामान्य साधु या साध्वी के द्वारा प्रतिबुद्ध हुए चार समय तक निरंतर सिद्ध हो सकते हैं। (९) ज्ञानद्वार—प्रथम दो ज्ञानों से (मति, श्रुत से) केवली हुए दो समय तक; मति, श्रुत एवं मनःपर्यवज्ञान से केवली हुए ४ समय तक तथा मति, श्रुत, अवधि ज्ञान से और चारों ज्ञानपूर्वक केवली हुए ८ समय तक सिद्ध हो सकते हैं। (१०) अवगाहनाद्वार-उत्कृष्ट अवगाहना वाले दो समय तक, मध्यम अवगाहना वाले निरंतर ८ समय तक, जघन्य अवगाहना वाले दो समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं। (११) उत्कृष्टद्वार अप्रतिपाती सम्यक्त्वी दो समय तक, संख्यात एवं असंख्यात काल तक के प्रतिपाती उत्कृष्ट ४ समय तक, अनन्तकाल प्रतिपाती सम्यक्त्वी उत्कृष्ट ८ समय तक सिद्ध हो सकते हैं। नोट शेष चार उपद्वार घटित नहीं होते। (६)अन्तरद्वार जितने काल तक एक भी जीव सिद्ध न हो उतना समय अन्तरकाल या विरहकाल कहलाता है। यह विरहकाल यहां विभिन्न द्वारों से बतलाया गया है— (१) क्षेत्रद्वार—समुच्चय अढाई द्वीप में विरह जघन्य १ समय का, उत्कृष्ट ६ मास का। जम्बूद्वीप के महाविदेह और धातकीखण्ड के महाविदेह में उत्कृष्ट पृथक्त्व (२ से ९ तक) वर्ष का, पुष्करार्द्ध द्वीप में एक वर्ष से कुछ अधिक काल का विरह पड़ सकता है। (२) कालद्वार-जन्म की अपेक्षा से ५ भरत ५ एरावत में १८ कोड़ाकोड़ी सागरोपम से कुछ न्यून समय का अन्तर पड़ता है। क्योंकि उत्सर्पिणी काल का चौथा आरा दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम, पाँचवा तीन और छठा चार कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है। अवसर्पिणी काल का पहला आरा चार, दूसरा तीन और तीसरा दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है। ये सब १८ कोड़ाकोड़ी हुए। इनमें से उत्सर्पिणी काल में चौथे आरे की आदि में २४वें तीर्थंकर का शासन संख्यात काल तक चलता है। तत्पश्चात् विच्छेद हो जाता है। अवसर्पिणी काल के तीसरे आरे के अन्तिम भाग में पहले तीर्थंकर पैदा होते हैं। उनका शासन तीसरे आरे में एक लाख पूर्व तक चलता है, इस कारण अठारह कोड़ाकोड़ी से कुछ न्यून कहा। उस शासन में से सिद्ध हो सकते हैं, उसके व्यवच्छेद होने पर उस क्षेत्र में जन्मे हुए सिद्ध नहीं होते। संहरण की अपेक्षा से उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष का है। (३) गतिद्वार-नरक से निकले हुए सिद्ध होने का उत्कृष्ट अन्तर पृथक्त्व हजार वर्ष का, तिर्यंच से निकले हुए सिद्धों का अंतर पृथक्त्व १०० वर्ष का, तिर्यंची और सौधर्म-ईशान देवलोक के देवों को छोड़कर शेष सभी देवों से आए सिद्धों का अन्तर १ वर्ष से कुछ अधिक का एवं
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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