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________________ ५६] [नन्दीसूत्र जहा—पढमसमय-अजोगिभवत्थ-केवलणाणं च, अपढमसमय-अजोगिभवत्थ-केवलणाणं च। अहवा चरमसमय-अजोगिभवत्थकेवलणाणं च, अचरमसमय-अजोगिभवत्थकेवलणाणं च। से तं भवत्थ-केवलणाणं। ३१—गौतम स्वामी ने पूछा-भगवन्! केवलज्ञान का स्वरूप क्या है? उत्तर—गौतम! केवलज्ञान दो प्रकार का प्रतिपादन किया गया है, जैसे—(१) भवस्थकेवलज्ञान और (२) सिद्ध-केवलज्ञान। प्रश्न—भवस्थ-केवलज्ञान कितने प्रकार का है? उत्तर—भवस्थ-केवलज्ञान दो प्रकार का है, यथा—(१) सयोगिभवस्थ-केवलज्ञान एवं (२) अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान। प्रश्न—भगवन् ! सयोगिभवस्थ-केवलज्ञान कितने प्रकार का है? भगवान् ने उत्तर दिया—गौतम! सयोगिभवस्थ-केवलज्ञान भी दो प्रकार का है, यथा—प्रथमसमय-सयोगिभवस्थ-केवलज्ञान अर्थात् जिसे उत्पन्न हुए प्रथम ही समय हो और दूसरा अप्रथमसमय-सयोगिभवस्थ-केवलज्ञान—जिस ज्ञान को पैदा हुए एक से अधिक समय हो गये हों। इसे अन्य दो प्रकार से भी बताया है। यथा (१) चरमसमय-सयोगिभवस्थ-केवलज्ञानसयोगिअवस्था में जिसका अन्तिम एक समय शेष रह गया है, ऐसे भवस्थकेवली का ज्ञान (२) अचरमसमय-सयोगिभवस्थ केवलज्ञान-सयोगि-अवस्था में जिसके अनेक समय शेष रहते हैं उसका केवलज्ञान। इस प्रकार यह सयोगिभवस्थ-केवलज्ञान का वर्णन है। प्रश्न –अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान कितने प्रकार का है? उत्तर—अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान दो प्रकार का है, यथा(१) प्रथमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान, (२) अप्रथमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान, अथवा (१) चरमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान, (२) अचरमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान। इस प्रकार अयोगिभवस्थ केवलज्ञान का वर्णन पूरा हुआ। यही भवस्थ-केवलज्ञान है। विवेचन यहाँ सकल प्रत्यक्ष का स्वरूप बताया गया है। अरिहन्त और सिद्ध भगवान् में केवलज्ञान समान होने पर भी स्वामी के भेद से उसके दो भेद किये हैं—(१) भवस्थकेवलज्ञान और (२) सिद्धकेवलज्ञान। जो ज्ञान ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय, इन चार घातिकर्मों के क्षय होने से उत्पन्न होता है, वह आवरण. से सर्वथा रहित एवं पूर्ण होता है। जिस प्रकार रवि-मण्डल में प्रकाश ही प्रकाश होता है अंधकार का लेश भी नहीं होता, इसी प्रकार केवलज्ञान पूर्ण प्रकाश
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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