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________________ ज्ञान के पांच प्रकार] [४३. प्राप्त हो जाता है। शेष मध्यम प्रतिपाति के अनेक प्रकार हैं। जैसे तेल एवं वर्तिका के होते हुए भी वायु के झोंके से दीपक एकदम बुझ जाता है इसी प्रकार प्रतिपाति अवधिज्ञान का ह्रास धारे-धीरे नहीं होता अपितु वह किसी भी क्षण एकदम लुप्त हो जाता है। अप्रतिपाति अवधिज्ञान २५-से किं तं अपडिवाति ओहिणाणं ? अपडिवाति ओहिणाणं जेणं अलोगस्स एगमवि आगासपदेसं पासेज्जा तेण परं अपडिवाति ओहिणाणं। से त्तं अपडिवाति ओहिणाणं। २४–प्रश्न–अप्रतिपाति अवधिज्ञान किस प्रकार का है ? उत्तर—जिस ज्ञान से ज्ञाता अलोक के एक भी आकाश-प्रदेश को जानता है—देखता है, वह अप्रतिपाति अर्थात् न गिरने वाला अवधिज्ञान कहलाता है। यह अप्रतिपाति अवधिज्ञान का स्वरूप है। विवेचन—जैसे कोई महापराक्रमी पुरुष अपने समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके निष्कंटक राज्य करता है, ठीक इसी प्रकार अप्रतिपाति अवधिज्ञान केवलज्ञानरूप राज्य-श्री को अवश्य प्राप्त करके त्रिलोकीनाथ सर्वज्ञ बन जाता है। यह ज्ञान बारहवें गुणस्थान के अन्त तक स्थायी रहता है, क्योंकि तेरहवें गुणस्थान के प्रथम समय में केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार अवधिज्ञान के छह भेदों का वर्णन समाप्त हुआ। द्रव्यादिक्रम से अवधिज्ञान का निरूपण २५-तं समासओ चउव्विहं पण्णत्तं, तं जहा—दव्वओ खत्तओ कालओ भावओ। तत्थ दव्वओ णं ओहिणाणी जहण्णेणं अणंताणि रूविदव्वाइं जाणइ पासइ, उक्कोसेणं सव्वाइं रूविदव्वाइं जाणइ पासइ। खेत्तओ णं ओहिणाणी जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जाई अलोए लोयमेत्ताई खंडाई . जाणइ पासइ। कालओ णं ओहिणाणी जहण्णेणं आवलियाए असंखेजतिभागं जाणइ पासइ, उक्कोसेणं असंखेन्जाओ उस्सपिणीओ अवसप्पिणीओ अतीतं च अणागतं च कालं जाणइ पास। भावओ णं ओहिणाणी जहणणेणं अणंते भावे जाणइ पासइ, उक्कोसेणवि अणंते भावे जाणइ पासइ, सव्वभावाणमणंतभागं जाणइ पासइ। २५–अवधिज्ञान संक्षिप्त में चार प्रकार से प्रतिपादित किया गया है, यथा—द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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