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________________ संघ-स्तुतिविषयक उपसंहार ] संघ-स्तुति विषयक उपसंहार १९. नगर-रह- चक्क पउमे, चन्दे सूरे समुद्द - मेरुम्मि । जो उवमिज्जइ सययं तं संघगुणायरं वंदे ॥ [ ११ १९ – नगर, रथ, चक्र, पद्म, चन्द्र, सूर्य, समुद्र तथा मेरु इन सब में जो विशिष्ट गुण समाहित हैं, तदनुरूप श्रीसंघ में भी अलौकिक दिव्य गुण हैं । इसलिए संघ को सदैव इनसे उपमित किया है। संघ अनन्तानन्त गुणों का आकर है। ऐसे विशिष्ट गुणों से युक्त संघ को मैं वन्दन करता हूँ । विवेचन-प्रस्तुत गाथा में आठ उपमाओं में श्रीसंघ को उपमित करके संघ-स्तुति का उपसंहार किया गया है । स्तुतिकार ने गाथा के अन्तिम चरण में श्रद्धा से नतमस्तक हो श्रीसंघ को वन्दन किया है । जो तद्रूप गुणों का आकर है वही भाव- निक्षेप है । अतः यहां नाम, स्थापना और द्रव्य रूप निक्षेप को छोड़कर केवल भाव- निक्षेप ही वन्दनीय समझना चाहिए । चतुर्विंशति- जिन - स्तुति २०. (वंदे) उसभं अजियं संभवमभिनंदण-सुमई सुप्पभं सुपासं । ससिपुप्फदंतसीयल - सिज्जंसं वासुपूज् च ॥ २१. विमलमणंत य धम्मं संतिं कुंथुं अरं च मल्लि च । मुणिसुव्वय नमि नेमिं पासं तह वद्धमाणं च ॥ २०- २१ – ऋषभ, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, (सुप्रभ) सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ (शशि ), सुविधि (पुष्पदन्त), शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शांति, कुंथु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, (अरिष्टनेमि), पार्श्व और वर्द्धमान —— श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन करता हूँ। विवेचन —— प्रस्तुत दो गाथाओं में वर्त्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। पांच भरत तथा पांच ऐरावत—इन दस ही क्षेत्रों में अनादि से काल-चक्र का अवसर्पण और उत्सर्पण होता चला आ रहा है। एक काल-चक्र के बारह आरे होते हैं। इनमें छह आरे अवसर्पिणी के और छह उत्सर्पिणी के होते हैं । प्रत्येक अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणी में चौबीस - चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्त्ती, नौ बलदेव, नौ वासुदेव तथा नौ प्रति वासुदेव इस प्रकार तिरेसठ शलाका - पुरुष होते हैं । गणधरावलि २२. पडमित्थ इंदभूई, बीए पुण होइ अग्गिभूइत्ति । तइए य वाउभूई, तओ वियत्ते सुहम्मे य ॥ २३. मंडिय-मोरियपुत्ते, अकंपिए चेव अयलभाया य । मेयज्जे य पहासे, गणहरा हुन्ति वीरस्स ॥
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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