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[नन्दीसूत्र प्रतिपादन करने में समर्थ हो जाता है। इसीलिए प्रत्येक जिज्ञासु को आगम-शास्त्र का अध्ययन विधिपूर्वक ही करना चाहिए।
सूत्रार्थ व्याख्यान-विधि आचार्य, उपाध्याय या बहुश्रुत गुरु के लिए भी आवश्यक है कि वह शिष्य को सर्वप्रथम सूत्र का शुद्ध उच्चारण और अर्थ सिखाए। तत्पश्चात् उस आगम के शब्दों की सूत्रस्पर्शी नियुक्ति बताए। तीसरी बार पुनः उसी सूत्र को वृत्ति-भाष्य, उत्सर्ग-अपवाद और निश्चय-व्यवहार, इन सबका आशय नय, निक्षेप, प्रमाण और अनुयोगद्वार आदि विधि से व्याख्या सहित पढ़ाए। इस क्रम से अध्यापन करने पर गुरु शिष्य को श्रुतपारंगत बना सकता है।
इस प्रकार नन्दीसूत्र की समाप्ति के साथ अङ्गप्रविष्ट श्रुतज्ञान और परोक्ष का विषयवर्णन सम्पूर्ण हुआ।