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[नन्दीसूत्र विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में बारह अंगरूप गणिपिटक में अनन्त सद्भावों का तथा इसके प्रतिपक्षी अनन्त अभावरूप पदार्थों का वर्णन किया गया है। सभी पदार्थ अपने स्वरूप से सद्रूप होते हैं और पर-रूप की अपेक्षा से असद्प। जैसे—जीव में अजीवत्व का अभाव और अजीव में जीवत्व का अभाव है।
हेतु-अहेतु—हेतु अनन्त हैं और अनन्त ही अहेतु भी हैं। इच्छित अर्थ की जिज्ञासा में जो साधन हों वे हेतु कहलाते हैं तथा अन्य सभी अहेतु।
कारण-अकारण घट और पट स्वगुण की अपेक्षा से कारण हैं तथा परगुण की अपेक्षा से अकारण। जैसे—घट का उपादान कारण मिट्टी का पिण्ड होता है और निमित्त होते हैं, दण्ड, चक्र, चीवर एवं कुम्हार आदि। इसी प्रकार पट का उपादान कारण तन्तु, और निमित्त कारण होते हैं—जुलाहा तथा खड्डी आदि बुनाई के सभी साधन। इस प्रकार घट निज गुणों की अपेक्षा से कारण तथा पट के गुणों की अपेक्षा से अकारण और पट अपने निज-गुणों की अपेक्षा से कारण तथा घट के गणों की अपेक्षा से अकारण होता है। जीव अनन्त हैं और अजीव भी अनन्त हैं। भव्य अनन्त हैं और अभव्य भी अनन्त ही हैं। पारिणामिक-स्वाभाविकभाव हैं। किसी कर्म के उदय आदि की अपेक्षा न रखने के कारण इनमें परिवर्तन नहीं होता। अनन्त संसारी जीव और अनन्त सिद्ध हैं। सारांश यह है कि द्वादशाङ्ग गणिपिटक में पूर्वोक्त सभी का वर्णन किया गया है।
द्वादशाङ्ग श्रुत की विराधना का कुफल ११२–इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसार-कंतारं अणुपरिअट्टिसु।
इच्चेइअं दुवालसंग गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरिअटुंति।
- इच्चेइअंदुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरिअट्टिस्संति।
११२—इस द्वादशाङ्ग गणिपिटक की भूतकाल में अनन्त जीवों ने विराधना करके चार गतिरूप संसारकान्तार में भ्रमण किया।
इसी प्रकार इस द्वादशाङ्ग गणिपिटक की वर्तमानकाल में परिमित जीव आज्ञा से विराधना करके चार गतिरूप संसार में भ्रमण कर रहे हैं।
__इसी प्रकार द्वादशाङ्ग गणिपिटक की आगामी काल में अनन्त जीव आज्ञा से विराधना करके चार गतिरूप संसारकान्तार में भ्रमण करेंगे।
विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में वीतराग प्ररूपित शास्त्र-आज्ञा का उल्लंघन करने पर जो दुष्फल प्राप्त होता है वह बताते हुए कहा है—जिन जीवों ने द्वादशाङ्ग श्रुत की विराधना की, वे चतुर्गतिरूप संसार-कानन में भटके हैं, जो जीव विराधना कर रहे हैं वे वर्तमान में नाना प्रकार के दुःख भोग