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________________ श्रुतज्ञान] [२०७ में अवगाढ हैं, उनका विस्तृत विवरण वर्णनअवगाढश्रेणिका में होगा, ऐसी सम्भावना की जा सकती ५. उपसम्पादन-श्रेणिका परिकर्म १०२—से किं तं उवसंपज्जणसेणिआ परिकम्मे ? उवसंपज्जणसेणिआपरिकम्मे एक्कारसविहे पन्नत्ते, तं जहा (१) पाढोआगा (मा) सपयाई, (२) केउभूयं, (३) रासिबद्धं, (४) एगगुणं, (५) दुगुणं, (६) तिगुणं, (७) केउभूयं, (८) पडिग्गहो, (९) संसारपडिग्गहो, (१०) मंदावत्तं, (११) उवसंपजणावत्तं, से त्तं उपसंपज्जणसेणिआ-परिकम्मे। १०२—वह उपसम्पादन-श्रेणिका-परिकर्म कितने प्रकार का है ? उपसम्पादन-श्रेणिका-परिकर्म ग्यारह प्रकार का है, यथा (१) पृथगाकाशपद (२) केतुभूत, (३) राशिबद्ध, (४) एकगुण, (५) द्विगुण, (६) त्रिगुण, (७) केतुभूत, (८) प्रतिग्रह, (९) संसारप्रतिग्रह, (१०) नन्दावर्त, (११) उपसम्पादनावर्त। यह उपसम्पादनश्रेणिका-परिकर्म श्रुत है। विवेचन—इस सूत्र में उपसम्पादन-श्रेणिका-परिकर्म का वर्णन है। उवसंपज्जण का अर्थ अङ्गीकार करना अथवा ग्रहण करना है। सभी साधकों की जीवन-भूमिका एक सरीखी नहीं होती। अतः दृष्टिवाद के वेत्ता, साधक की शक्ति के अनुसार जीवनोपयोगी साधन बताते हैं, जिससे उसका कल्याण हो सके। साधक के लिए जो जो उपादेय है, उसका विधान करते हैं और साधक उन्हें इस प्रकार ग्रहण करते हैं—'असजम परियाणामि, संजमं उवसंपज्जामि।' यहाँ 'उवसंपज्जामि' का अर्थ होता है ग्रहण करता हूं। संभव है, उपक्षमपादन श्रेणिका परिकर्म में जितने भी कल्याण के छोटे से छोटे या बड़े से बड़े साधन हैं, उनका उल्लेख किया गया हो। ६.विप्रजहत्श्रेणिका परिकर्म १०३–से किं तं विप्पजहणसेणिअपरिकम्मे ? विप्पजहणसेणिआपरिकम्मे एक्कारसविहे पन्नत्ते, तं जहा (१) पाढोआगा (मा) सपयाई, (२) केउभूअं, (३) रासिबद्धं, (४) एगगुणं, (५) दुगुणं, (६) तिगुणं, (७) केउभूअं, (८) पडिग्गहो, (९) संसारपडिग्गहो, (१०) नन्दावत्तं, (११) विप्पजहदावत्तं से त्तं विप्पजहणसेणिआपरिकम्मे। १०३–विप्रजहत्श्रेणिका-परिकर्म कितने प्रकार का है ? विप्रजहत्श्रेणिका-परिकर्म ग्यारह प्रकार का है, यथा—(१) पृथकाकाशपद, (२) केतुभूत, (३) राशिबद्ध, (४) एकगुण, (५) द्विगुण, (६) त्रिगुण, (७) केतुभूत, (८) प्रतिग्रह, (९) संसारप्रतिग्रह, (१०) नन्दावर्त, (११) विप्रजहदावर्त, यह विप्रजहत्श्रेणिका-परिकर्मश्रुत है।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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