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[नन्दीसूत्र ३. पुष्ठश्रेणिका परिकर्म १०० से किं तं पुट्ठसेणिआपरिकम्मे ? पुटुसेणिआपरिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा
(१) पाढोआगा (मा) सपयाई, (२) केउभूयं (३) रासिबद्धं, (४) एगगुणं, (५) दुगुणं, (६) तिगुणं, (७) केउभूयं, (८) पडिग्गहो, (९) संसारपडिग्गहो, (१०) नंदावत्तं, (११) पुट्ठावत्तं।
से तं पुट्ठसेणिआपरिकम्मे। १००—पृष्ठश्रेणिका-परिकर्म कितने प्रकार का है ?
पृष्टश्रेणिका-परिकर्म ग्यारह प्रकार का है, यथा—(१) पृथगाकाशपद, (२) केतुभूत, (३) राशिबद्ध (४) एकगुण, (५) द्विगुण, (६) त्रिगुण, (७) केतुभूत, (८) प्रतिग्रह, (९) संसारप्रतिग्रह, (१०) नन्दावर्त, (११) पुष्टावर्त। यह पृष्टश्रेणिका-परिकर्म श्रुत है।
_ विवेचन सूत्र में पृष्ट श्रेणिका-परिकर्म के ग्यारह विभाग बताए गए हैं। प्राकृत में स्पृष्ट और पृष्ट, दोनों से 'पुट्ठ' शब्द बनता है। संभवतः इस परिकर्म में लौकिक और लोकोत्तर प्रश्न तथा उनके उत्तर होंगे। सभी प्रकार के प्रश्नों का इन ग्यारह प्रकारों में समावेश हो सकता है।
स्पृष्ट का दूसरा अर्थ होता है—स्पर्श किया हुआ। सिद्ध एक दूसरे से स्पृष्ट होते हैं, निगोद के शरीर में भी अनन्त जीव एक-दूसरे से स्पृष्ट रहते हैं। धर्म, अधर्म, एवं लोकाकाश के प्रदेश अनादिकाल से परस्पर स्पृष्ट हैं। पृष्टश्रेणिकापरिकर्म में इन सबका वर्णन हो, ऐसा संभव है।
४.अवगाढश्रेणिका परिकर्म १०१-से किं तं ओगाढसेणिआपरिकम्मे ? ओगाढसेणिआपरिकम्मे एक्कारसविहे पन्नत्ते, तं जहा (१) पाढोआगा (मा) सपयाई, (२) केउभूअं, (३) रासिबद्धं, (४) एगगुणं, (५) दुगुणं, (६) तिगुणं, (७) केउभूअं, (८) पडिग्गहो, (९) संसारपडिग्गहो, (१०) नंदावत्तं, (.११) ओगाढावत्तं।
से तं ओगाढसेणिआपरिकम्मे। १०१–प्रश्न —अवगाढश्रेणिका परिकर्म कितने प्रकार का है ?
उत्तर-अवगाढश्रेणिका परिकर्म ग्यारह प्रकार का है—(१) पृथगाकाशपद, (२) केतुभूत, (३) राशिबद्ध, (४) एकगुण, (५) द्विगुण, (६) त्रिगुण, (७) केतुभूत, (८) प्रतिग्रह, (९) संसारप्रतिग्रह, (१०) नन्दावर्त, (११) अवगाढावर्त। यह अवगाढ श्रेणिका-परिकर्म है।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में अवगाढ श्रेणिका परिकर्म का वर्णन है। आकाश का कार्य है सब द्रव्यों को अवगाह देना। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय, काल तथा पदगलास्तिकाय, ये पाँचों द्रव्य आधेय हैं, आकाश इनको अपने में स्थान देता है। जो द्रव्य जिस आकाश प्रदेश या देश