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________________ १९६ ] (८) श्री अन्तकृद्दशाङ्ग सूत्र ९०—से कि तं अंतगडदसाओ ? [ नन्दीसूत्र अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई, उज्जाणाई, चेइआई, वणसंडाई समोसरणाई, रायाणो, अम्मा- पियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइअ - परलोइआ इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआगा, सुअपरिग्गहा, तवोवहाणाई संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई अंतकिरिआओ आघविज्जति । अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। सेणं अंगट्टयाए अट्ठमे अंगे, एगे सुअक्खंधे अट्ठ वग्गा, अट्ठ उद्देसणकाला, अट्ठ समुद्देसणकाला संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड - निबद्ध-निकाइआ जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पन्नविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति । से. एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ । से त्तं अंतगडदसाओ । ॥ सूत्र ५३ ॥ ९० – प्रश्न — अन्तकृद्दशा - श्रुत किस प्रकार का है— उसमें क्या विषय वर्णित है ? उत्तर - अन्तकृद्दशा में अन्तकृत अर्थात् कर्म का अथवा जन्म-मरणरूप संसार का अन्त करने वाले महापुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक और परलोक की ऋद्धि विशेष, भोगों का परित्याग, प्रव्रज्या (दीक्षा) और दीक्षापर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधानतप, संलेखना, भक्त - प्रत्याख्यान, पादपोपगमन, अन्तक्रिया - शैलेशी अवस्था आदि विषयों का वर्णन है । अन्तकृद्दशा में परिमित वाचनाएँ, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात छन्द, संख्यात श्लोक, संख्यात निर्युक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियां हैं। अङ्गार्थ से यह आठवाँ अंग है। इसमें एक श्रुतस्कंध, आठ उद्देशनकाल और आठ समुद्देशन काल हैं । पद परिमाण से संख्यात सहस्र पद हैं। संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय तथा परिमित स और अनन्त स्थावर हैं । शाश्वत-कृत- निबद्ध-निकाचित जिन प्रज्ञप्त भाव कहे गए हैं। तथा प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किए जाते हैं। इस सूत्र का अध्ययन करने वाला तदात्मरूप ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है। इस तरह प्रस्तुत अङ्ग में चरण-करण की प्ररूपणा की गई है। यह अंतकृद्दशा का स्वरूप है । विवेचन—– सूत्र के नामानुसार अंतकृद्दशा से यह अभिप्राय है कि जिन साधु-साध्वियों ने संयम-साधना और तपाराधना करके जीवन के अंतिम क्षण में कर्मों का सम्पूर्ण रूप से क्षय कर
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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