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________________ १९४] [नन्दीसूत्र प्रश्नों का और विषयों का इस सूत्र में विस्तृत वर्णन दिया गया है। ___ इसी सूत्र में कुछ इतिहास महावीर के युग का, कुछ तीर्थंकर अरिष्टनेमि के समय का, कुछ पार्श्वनाथ के शासनकाल का और कुछ महाविदेह क्षेत्र से सम्बन्धित है। आठवें अध्ययन में तीर्थंकर मल्लिनाथ के पंच कल्याणकों का वर्णन है तथा सोलहवें अध्ययन में द्रोपदी के पिछले जन्म की कथा ध्यान देने योग्य है तथा उसके वर्तमान और भावी जीवन का भी विवरण है। दूसरे स्कन्ध में केवल पार्श्वनाथ स्वामी के शासनकाल में साध्वियों के गृहस्थजीवन, साध्वीजीवन और भविष्य में होने वाले जीवन का सुन्दर ढंग से वर्णन है। ज्ञाताधर्मकथाङ्ग श्रुत की भाषा-शैली अत्यन्त रुचिकर है तथा प्रायः सभी रसों का इसमें वर्णन मिलता है। शब्दालंकार और अर्थालंकारों ने सूत्र की भाषा को सरस और महत्त्वपूर्ण बना दिया है। शेष परिचय भावार्थ में दिया जा चुका है। (७) श्री उपासकदशाङ्ग सूत्र ८९ से किं तं उवासगदसाओ ? उवासगदसासु णं समणोवासयाणं नगराई, उज्जाणाणि, चेइयाइं, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइअ-परलोइआ इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परियागा, सुअपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, सीलव्वय-गुण-वेरमणपच्चक्खाण-पोसहोववासपडिवजणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाइओ, पुणबोहिलाभा, अन्तकिरिआओ अ आघविजंति। ___ उवासगदसासु परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेज्जाओ निजत्तीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्याए सत्तमे अंगे. एगे सअक्खंधे, दस अज्झयणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइआ जिण-पण्णत्ता भावा आघविन्जंति, पन्नविजंति, परूविन्जंति, दंसिन्जंति, निदंसिजंति, उवदंसिन्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विनाया, एवं चरण-करणपरूवणा आघविज्जइ। से त्तं उवासगदसाओ। ॥ सूत्र ५२॥ ८९—प्रश्न-उपासकदशा नामक अंग किस प्रकार का है ? उत्तर—उपासकदशा में श्रमणोपासकों के नगर, उद्यान, व्यन्तरायतन; वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक और परलोक की ऋद्धिविशेष, भोग-परित्याग, दीक्षा, संयम की पर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधानतप, शीलवत-गुणव्रत, विरमणव्रत-प्रत्याख्यान, पौषधोपवास का धारण करना, प्रतिमाओं का धारण करना, उपसर्ग, संलेखना, अनशन, पादपोपगमन, देवलोकगमन, पुनः सुकुल में उत्पत्ति, पुन: बोधि-सम्यक्त्व का लाभ और अन्तक्रिया इत्यादि विषयों का वर्णन
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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