________________
१९०]
[नन्दीसूत्र से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करणपरूवणा आघविज्जइ। से त्तं समवाए। ॥ सूत्र ४९॥ ८६-प्रश्न-समवायश्रुत का विषय क्या है?
उत्तर–समवायाङ्ग सूत्र में यथावस्थित रूप से जीवों, अजीवों और जीवाजीवों का आश्रयण किया गया है अर्थात् इनकी सम्यक् प्ररूपणा की गई है। स्वदर्शन, परदर्शन और स्व-परदर्शन का आश्रयण किया गया है। लोक अलोक और लोकालोक आश्रयण किये जाते हैं।
समवायाङ्ग में एक से लेकर सौ स्थान तक भावों की प्ररूपणा की गई है और द्वादशाङ्ग गणिपिटक का संक्षेप में परिचय आश्रयण किया गया है अर्थात् वर्णन किया गया है।
समवायाङ्ग में परिमित वाचना, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियाँ तथा संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं।
__ यह अङ्ग की अपेक्षा से चौथा अङ्ग है। एक श्रुतस्कंध; एक अध्ययन, एक उद्देशनकाल और एक समुद्देशनकाल है। इसका पदपरिमाण एक लाख चवालीस हजार है। संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस, अनन्त स्थावर तथा शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिनप्ररूपित भाव प्ररूपण, दर्शन, निंदर्शन और उपदर्शन से स्पष्ट किये गए हैं।
समवायाङ्ग का अध्ययन करने वाला तदात्मरूप, ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार समवायाङ्ग में चरण-करण की प्ररूपणा की गई है।
यह समवायाङ्ग का निरूपण है।
विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में समवायश्रुत का संक्षिप्त परिचय दिया है। जिसमें जीवादि पदार्थों का निर्णय हो उसे समवाय कहते हैं। समासिज्जंति आदि पदों का भाव यह है कि सम्यक् ज्ञान से ग्राह्य पदार्थों को स्वीकार किया जाता है अथवा जीवादि पदार्थ कुप्ररूपणा से निकाल कर सम्यक् प्ररूपण में समाविष्ट किये जाते हैं।
सूत्र में जीव, अजीव तथा जीवाजीव, जैनदर्शन, इतरदर्शन, लोक, अलोक, इत्यादि विषय स्पष्ट किए गए हैं। तत्पश्चात् एक अंक से लेकर सौ अंक तक जो-जो विषय जिस-जिस अंक में समाहित हो सकते हैं, उनका विस्तृत वर्णन दिया गया है।
इसमें दो सौ पचहत्तर सूत्र हैं। स्कंध, वर्ग, अध्ययन, उद्देशक आदि भेद नहीं है। स्थानाङ्गसूत्र के समान इसमें भी संख्या के क्रम से वस्तुओं का निर्देश निरन्तर सौ तक करने के बाद दो सौ, तीन सौ, चार सौ; इसी क्रम से हजार तक विषयों का वर्णन किया है। और संख्या बढ़ते हुए कोटि पर्यन्त चली गई है।
__ इसके बाद द्वादशाङ्ग गणिपिटक का संक्षिप्त परिचय और त्रेसठ शलाका पुरुषों के नाम, माता-पिता, जन्म, नगर, दीक्षास्थान आदि का वर्णन है।