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________________ श्रुतज्ञान] [१८५ दर्शनों का वर्गीकरण क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी, इस प्रकार चार मतों में होता है। इनका विवरण संक्षिप्त रूप में निम्न प्रकार से है (१) क्रियावादी क्रियावादी नौ तत्त्वों को कथंचित् विपरीत समझते हैं तथा धर्म के आंतरिक स्वरूप की यथार्थता को न जानने के कारण प्रायः बाह्य क्रियाकाण्ड के पक्षपाती रहते हैं। अतः क्रियावादी कहलाते हैं। वैसे इन्हें प्रायः आस्तिक ही माना जाता है। (२) अक्रियावादी–अक्रियावादी नव तत्त्व या चारित्ररूप क्रिया का निषेध करते हैं। इनकी गणना प्रायः नास्तिकों में होती है। स्थानाङ्गसूत्र के आठवें स्थान में आठ प्रकार के अक्रियावादियों का उल्लेख है। वे क्रमशः इस प्रकार हैं (१) एकवादी—कुछ विचारकों का मत है कि विश्व में जड़ पदार्थ के अलावा अन्य कुछ भी नहीं है, जो कुछ भी है मात्र जड़ ही है। आत्मा, परमात्मा या धर्म नाम की कोई वस्तु है ही नहीं। शब्दाद्वैतवादी एकमात्र शब्द की ही सत्ता मानते हैं। ब्रह्माद्वैतवादियों ने एकमात्र ब्रह्म के सिवाय अन्य समस्त द्रव्यों का निषेध किया है। उनका कथन है—"एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म।" या एक एव हि भूतात्मा, भूते भूते व्यवस्थितः ।। एकंधा बहुधा चैव, दृश्यते जलचन्द्रवत् ॥ अर्थात् —जिस प्रकार एक ही चन्द्रमा सभी जलाशयों में तथा दर्पणादि स्वच्छ पदार्थों में प्रतिबिम्बित होता है, वैसे ही समस्त शरीरों में एक ही आत्मा है। उपर्युक्त सभी मतवादियों का समावेश एकवादी में हो जाता है। (२) अनेकवादी जितने धर्म हैं उतने ही धर्मी हैं, जितने गुण हैं उतने ही गुणी हैं, जितने अवयव हैं, उतने ही अवयवी हैं। ऐसी मान्यता रखनेवाले को अनेकवादी कहते हैं। वे वस्तुगत अनन्त पर्याय होने से वस्तु को भी अनन्त मानते हैं। (३) मितवादी मितवादी लोक को सप्तद्वीप समुद्र तक ही सीमित मानते हैं, आगे नहीं। वे आत्मा को अंगुष्ठप्रमाण या श्यामाक तण्डुल प्रमाण मानते हैं, शरीर प्रमाण या लोकप्रमाण नहीं। तथा दृश्यमान जीवों को ही आत्मा मानते हैं, अनन्त-अनन्त नहीं। (४) निर्मितवादी—ईश्वरवादी सृष्टि का कर्ता, धर्ता और हर्ता ईश्वर को ही मानते हैं। उनकी मान्यता के अनुसार यह विश्व किसी न किसी के द्वारा निर्मित है। शैव शिव को, वैष्णव . विष्णु को और कोई ब्रह्मा को सृष्टि का निर्माता मानते हैं। दैवी भागवत में शक्ति देवी को ही निर्मात्री माना है। इस प्रकार उक्त सभी मतवादियों का समावेश इस भेद में हो जाता है। (५) सातावादी—इनकी मान्यता है कि सुख का बीज सुख है और दुःख का बीज दुःख है। इनके कथनानुसार इन्द्रियों के द्वारा वैषयिक सुखों का उपभोग करने से प्राणी भविष्य में भी सुखी हो सकता है और इसके विपरीत तप, संयम, नियम एवं ब्रह्मचर्य आदि से शरीर और मन को दुःख पहुँचाने से जीव परभव में भी दुःख पाता है। तात्पर्य यह है कि शरीर और मन को साता पहुँचाने
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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