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________________ १६२] [नन्दीसूत्र "संज्ञानं संज्ञा सम्यग्ज्ञानं, तदस्यास्तीति संज्ञी-सम्यग्दृष्टिस्तस्य यच्छ्रुतं, तत्संज़िश्रुतं सम्यक् श्रुतमिति।" सम्यक्दृष्टि जीव दृष्टिवादोपदेश से संज्ञी कहलाता है। वस्तुतः यथार्थ रूप से हिताहित में प्रवृत्ति-निवृत्ति सम्यक्दर्शन के बिना नहीं हो सकती। संज्ञी जीव ही यथायोग्य राग आदि भावंशत्रुओं को जीतने में प्रयत्नशील और कालान्तर में समर्थ बनता है। कहा भी है— तज्ज्ञानमेव न भवति, यस्मिन्नुदिते विभाति रागगणाः । तमसः कुतोऽस्ति शक्तिर्दिनकरकिरणाग्रतः स्थातुम् ॥ अर्थात् वह ज्ञान ही नहीं है, जिसके प्रकाशित होने पर भी राग-द्वेष, काम-क्रोध, मद-लोभ एवं मोह विभाव ठहर सकें। भला सूर्य के उदय होने पर क्या अंधकार ठहर सकता है ? कदापि नहीं। इस अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि असंज्ञी कहलाते हैं। इस प्रकार दृष्टिवादोपदेश की अपेक्षा से संज्ञी और असंज्ञी श्रुत का प्रतिपादन किया गया है। सम्यक्श्रुत ७६–से किं तं सम्मसुअं? सम्मसुअं जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पण्णनाणदंसणधरेहि, तेलुक्क-निरिक्खिअमहिअपूइएहिं, तीय-पडुप्पण्ण-मणागयजाणएहिं, सव्वण्णूहि, सव्वदरिसीहिं, पणीअं दुवालसंगं गणिपिडगं, तं जहा (१) आयारो (२) सूयगडो (३) ठाणं (४) समवाओ (५) विवाहपण्णत्ती (६) नायाधम्मकहाओ (७) उवासगदसाओ, (८) अंतगडदसाओ (९) अणुत्तरोववाइयदसाओ (१०) पण्हावागरणाई, (११) विवागसुअं (१२) दिट्ठिवाओ, इच्चेअं दुवालसंगं गणिपिडगं—चोद्दसपुस्विस्स सम्मसुअं, अभिण्णदसपुव्विस्स सम्मसुअं, तेणं परं भिण्णेसु भयणा। से तं सम्मसुअं। ॥ सूत्र ४१॥ ७६-सम्यक्श्रुत किसे कहते हैं ? सम्यक्श्रुत उत्पन्न ज्ञान और दर्शन को धारण करने वाले, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा आदर सन्मानपूर्वक देखे गये तथा यथावस्थित उत्कीर्तित, भावयुक्त नमस्कृत, अतीत, वर्तमान और अनागत को जाननेवाले, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी अहँत-तीर्थंकर भगवन्तों द्वारा प्रणीत-अर्थ से कथन किया हुआ—जो यह द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक हैं, जैसे (१) आचाराङ्ग (२) सूत्रकृताङ्ग (३) स्थानाङ्ग (४) समवायाङ्ग (५) व्याख्याप्रज्ञप्ति (६) ज्ञाताधर्मकथाङ्ग (७) उपासकदशाङ्ग (८) अन्तकृद्दशाङ्ग (९) अनुत्तरौपपातिकदशाङ्ग (१०) प्रश्नव्याकरण (११) विपाकश्रुत और (१२) दृष्टिवाद, यह सम्यक्श्रुत है।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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