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________________ १५८] [नन्दीसूत्र शंखोऽयमित्यक्षरानुविद्धं ज्ञानमुपजायते इत्यर्थः।" अर्थात् "शब्द ग्रहण होने के पश्चात् इन्द्रिय और मन के निमित्त से जो शब्दार्थ पर्यालोचनानुसारी ज्ञान उत्पन्न होता है, उसी को लब्ध्यक्षर कहते हैं।" यहाँ प्रश्न हो सकता है कि उपर्युक्त लक्षण संज्ञी जीवों में घटित हो सकता है, किन्तु विकलेन्द्रिय एवं असंज्ञी जीवों में अकारादि वर्गों को सुनने की और उच्चारण कर सकने की शक्ति का अभाव है। उन जीवों के लब्धि अक्षर कैसे संभव हो सकता है ? उत्तर यह है कि श्रोत्रेन्द्रिय का अभाव होने पर भी तथाविध क्षयोपशम उन जीवों में अवश्य होता है। इसीलिये उनको अव्यक्त भावश्रुत प्राप्त होता है। उन जीवों में आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा होती है। संज्ञा अभिलाषा को कहते हैं, अभिलाषा, ही प्रार्थना है। भय दूर हो जाये, यह प्राप्त हो जाय, इस प्रकार की चाह अथवा अक्षरानुसारी होने से उनको भी नियम से लब्धि-अक्षर होता है। वह छः प्रकार का है। (१) जीवशब्द, अजीवशब्द या मिश्रशब्द सुनकर कहने वाले के भाव को समझ लेना तथा गर्जना करने से, हिनहिनाने से अथवा भोंकने आदि के शब्दों से तिर्यंच जीवों के भावों को समझ लेना श्रोत्रेन्द्रिय लब्ध्यक्षर है। (२) पत्र, पत्रिका और पुस्तक आदि पढ़कर तथा औरों के संकेत व इशारे देखकर उनके अभिप्राय को जान लेना चक्षुरिन्द्रिय-लब्ध्यक्षर कहलाता है, क्योंकि देखकर उसके उत्तर के लिये, उसकी प्राप्ति के लिए अथवा उसे दूर करने के लिये जो भाव होते हैं वे अक्षररूप होते हैं। (३) विभिन्न जाति के फल-फूलों की सुगंध, पशु-पक्षी, स्त्री-पुरुष की गंध अथवा भक्ष्याभक्ष्य पदार्थों की गंध को सूंघकर जान लेना घ्राणेन्द्रिय लब्धि-अक्षर है। (४) किसी भी खाद्य पदार्थ को चखकर उसके खटे मीठे तीखे अथवा चरपरें रस से पदार्थ को जान कर लेना जिह्वेन्द्रिय लब्ध्यक्षर कहलाता है। (५) स्पर्श के द्वारा शीत, उष्ण, हलके, भारी, कठोर अथवा कोमल वस्तुओं की पहचान कर लेना तथा प्रज्ञाचक्षु होने पर भी स्पर्श से अक्षर पहचान कर भाव समझ लेना स्पर्शेन्द्रिय लब्ध्यक्षर कहलाता है। (६) जीव जिस वस्तु का चिन्तन करता है, उसकी अक्षर रूप में शब्दावलि अथवा वाक्यावलि बन जाती है, यथा—अमुक वस्तु मुझे प्राप्त हो जाये, मेरा मित्र मुझे मिल जाये आदि। यह नोइन्द्रिय अथवा मनोजन्य लब्ध्यक्षर कहलाता है। यहाँ प्रश्न उत्पन्न होता है कि जब पाँच इन्द्रियों और मन, इन छहों निमित्तों में से किसी भी निमित्त से मतिज्ञान भी पैदा होता है और श्रुतज्ञान भी, तब उस ज्ञान को मतिज्ञान कहा जाये या श्रुतज्ञान ? उत्तर इस प्रकार है—मतिज्ञान कारण है और श्रुतज्ञान कार्य। मतिज्ञान सामान्य है जबकि
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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