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मतिज्ञान]
[१४९ वह यह नहीं जानता कि 'यह क्या-कैसा स्वप्न है?' तब ईहा में प्रवेश करके जानता है कि 'यह अमुक स्वप्न है। उसके बाद अवाय में प्रवेश करके उपगत होता है। तत्पश्चात् वह धारणा में प्रवेश करके संख्यात या असंख्यात काल तक धारण करता है।
इस प्रकार मल्लक के दृष्टांत से अवग्रह का स्वरूप हुआ।
विवेचन उल्लिखित सूत्र में अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा का उदाहरणों सहित विस्तृत वर्णन किया गया है। जैसे कि जागृत अवस्था में किसी व्यक्ति ने कोई अव्यक्त शब्द सुना किंतु उसे यह ज्ञात नहीं हुआ कि यह शब्द किसका है? जीव अथवा अजीव का है? अथवा किस व्यक्ति का है? ईहा में प्रवेश करने के बाद वह जानता है कि यह शब्द अमुक व्यक्ति का होना चाहिये, क्योंकि वह अन्वय-व्यतिरेक से ऊहापोह करके निर्णय के उन्मुख होता है। फिर अवाय में वह निश्चय करता है कि यह शब्द अमुक व्यक्ति का ही है। इसके पश्चात् निश्चय किये हुए शब्द को धारणा द्वारा संख्यात काल या असंख्यात काल तक धारण किये रहता है।
____ ध्यान में रखना चाहिये कि चक्षुरिन्द्रिय का अर्थावग्रह होता है, व्यंजनावग्रह नहीं। शेष सब वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिये। नोइन्द्रिय का अर्थ मन है। उसे स्पष्ट करने के लिए सूत्रकार ने स्वप्न का उदाहरण दिया है। स्वप्न में द्रव्य इन्द्रियाँ कार्य नहीं करतीं, भावेन्द्रियाँ और मन ही काम करते हैं। व्यक्ति जो स्वप्न में सुनता है, देखता है, सूंघता है, चखता है, छूता है और चिन्तन-मनन करता है, इन सभी में मुख्यतया मन की होती है। जागृत होने पर वह स्वप्न में देखे हुए दृश्यों को अथवा कही-सुनी बात को अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा तक ले आता है। कोई ज्ञान अवग्रह तक, कोई ईहा तक और कोई अवाय तक ही रह जाता है। यह नियम नहीं है कि प्रत्येक अवग्रह धारणा की कोटि तक पहुँचे ही।
सूत्रकार ने इस प्रकार प्रतिबोधक और मल्लक के दृष्टान्तों से व्यंजनावग्रह का वर्णन करते हुए प्रसंगवश मतिज्ञान के अट्ठाईस भेदों का भी विस्तृत वर्णन कर दिया है। वैसे मतिज्ञान के तीन सौ छत्तीस भेद भी होते हैं।
प्रस्तुत सूत्र की वृत्ति में बताया गया है कि मतिज्ञान के अवग्रह आदि अट्ठाईस भेद होते हैं। प्रत्येक भेद को बारह भेदों में गुणित करने से तीन सौ छत्तीस भेद हो जाते हैं। पाँच इन्द्रियाँ
और मन, इन छह निमित्तों से होने वाले मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा रूप से चौबीस भेद होते हैं। वे सब विषय की विविधता और क्षयोपशम से बारह-बारह प्रकार के होते हैं। इन्हें निम्न प्रकार से सरलतापूर्वक समझा जा सकता है
(१) बहुग्राही (६) अवग्रह (६) ईहा (६) अवाय (६) धारणा (२) अल्पग्राही (६) अवग्रह (६) ईहा (६) अवाय (६) धारणा (३) बहुविधग्राही (६) अवग्रह (६) ईहा (६) अवाय (६) धारणा (४) एकविधग्राही (६) अवग्रह (६) ईहा (६) अवाय (६) धारणा ( ५) क्षिप्रगाही (६) अवग्रह (६) ईहा (६) अवाय (६) धारणा