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________________ मतिज्ञान] [११९ कि दृष्टि के कारण कोई व्यक्ति मर न जाये, उस सर्प ने पूंछ के बल से निकलना प्रारंभ किया। ज्यों-ज्यों वह निकलता गया सपेरे ने उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़ कर दिये। मरते समय भी सर्प ने किंचित् मात्र भी रोष न करते हुए पूर्ण समभाव रखा और उसके परिणामस्वरूप वह उसी राज्य के राजा के यहाँ पुत्र बन कर उत्पन्न हुआ। उसका नाम नागदत्त रखा गया। नागदत्त पूर्वजन्म के उत्तम संस्कार लेकर जन्मा था, अतः वह बाल्यावस्था में ही संसार से विरक्त हो गया और मनि बन गया। अपने विनय, सरलता. सेवा एवं क्षमा आदि असाधारण गणों से वह देवों के लिये भी वंदनीय बन गया। अन्य मुनि इसी कारण उससे ईर्ष्या करने लगे। पिछले जन्म में तिर्यंच होने के कारण उसे भूख अधिक लगती थी। इसी कारण वह अनशन तपस्या नहीं कर सकता था। एक उपवास करना भी उसके लिये कठिन था। एक दिन, जबकि अन्य मुनियों के उपवास थे, नागदत्त भूख सहन न कर पाने के कारण अपने लिए आहार लेकर आया। विनयपूर्वक आहार उसने अन्य मुनियों को दिखाया पर उन्होंने उसे भुखमरा कहकर तिरस्कृत करते हुए उस आहार में थूक दिया। नागदत्त में इतना समभाव एवं क्षमा का जर्बदस्त गुण था कि उसने तनिक भी रोष तो नहीं ही किया, उलटे भूखा न रह पाने के कारण अपनी निन्दा तथा अन्य सभी की प्रशंसा करता रहा। ऐसी उपशान्त वृत्ति तथा परिणामों की विशुद्धता के कारण उसी समय उसे केवलज्ञान हो गया और देवता कैवल्य-महोत्सव मनाने के लिये उपस्थित हुए। यह देखकर अन्य तपस्वियों को अपने व्यवहार पर घोर पश्चात्ताप होने लगा। पश्चात्ताप के परिणामस्वरूप उनकी आत्माओं के निर्मल हो जाने से उन्हें भी केवलज्ञान उपलब्ध हो गया। विपरीत परिस्थितियों में भी पूर्ण समता एवं क्षमा-भाव रखकर कैवल्य को प्राप्त कर लेना नागदत्त की पारिणामिकी बुद्धि के कारण ही संभव हो सका। (११) अमात्य पुत्र काम्पिल्यपुर के राजा का नाम ब्रह्म, मंत्री का धनु, राजकुमार का ब्रह्मदत्त तथा मंत्री के पुत्र का नाम वरधनु था। ब्रह्म की मृत्यु हो जाने पर उसके मित्र दीर्घपृष्ठ ने राज्यकार्य संभाला किन्तु रानी चूलनी से उसका अनैतिक सम्बन्ध हो गया। राजकुमार ब्रह्मदत्त को जब यह ज्ञात हुआ तो उसने अपनी माता तथा दीर्घपृष्ठ को मार डालने की धमकी दी। इस पर दोनों ने कुमार को अपने मार्ग का कंटक समझकर उसका विवाह करने तथा विवाहोपरान्त पुत्र और पुत्रवधू को लाक्षागृह में जला देने का निश्चय किया। किन्तु ब्रह्मदत्त कुमार वफादार मंत्री ध वं उसके पुत्र वरधुन की सहायता से लाक्षागृह में से निकल गया। वह वृत्तान्त पाठक पढ़ चुके हैं। तत्पश्चात् जब वे जंगल में जा रहे थे, ब्रह्मदत्त को प्यास लगी। वरधनु राजकुमार को एक वृक्ष के नीचे बिठाकर स्वयं पानी लेने चला गया। इधर जब दीर्घपृष्ठ को राजकुमार के लाक्षागृह से भाग निकलने का पता चला तो उसने कुमार और उसके मित्र वरधनु को खोजकर पकड़ लाने के लिये अनुचरों को दौड़ा दिया। सेवक दोनों को खोजते हुए जंगल के सरोवर के उसी तीर पर पहुँचे जहाँ वरधनु राजकुमार के लिए पानी भर रहा था। कर्मचारियों ने वरधन को पकड लिया पर उसी समय वरधन ने जोर से इस प्रकार शब्द किया कि कुमार ब्रह्मदत्त ने संकेत समझ लिया और वह उसी क्षण घोड़े पर सवार होकर भाग
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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