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________________ ११० ] [ नन्दीसूत्र नहीं की थी, यही कहा था कि जो व्यक्ति जिस कार्य को करता है उसमें वह अपने अभ्यास के कारण कुशल हो ही जाता है । अगर तुम्हें विश्वास न हो तो मैं अपनी कला तुम्हें दिखाकर विश्वस्त कर दूँ। देखो, मेरे हाथ में मूंग के ये दाने हैं। तुम कहो तो मैं इन सबको एक साथ ऊर्ध्वमुख, अधोमुख अथवा पार्श्व से गिरा दूँ ।" चोर चकित हुआ । उसे विश्वास नहीं आ रहा था । तथापि किसान के कथन की सचाई जानने के लिये वह बोला--" इन सबको अधोमुख डालकर बताओ ।" किसान ने उसी वक्त पृथ्वी पर एक चादर फैलाई और मूँग के दाने इस कुशलता से बिखेरे कि सभी अधोमुख ही गिरे। चोर ने ध्यान से दानों को देखा और कहा - " भाई ! तुम तो मुझसे भी कुशल हो अपने कार्य में । " इतना कहकर वह पुन: लौट गया। उक्त उदाहरण तस्कर एवं कृषक, दोनों की कर्मजा बुद्धि का है । (३) कौलिक— जुलाहा अपने हाथ में सूत के धागों को लेकर ही सही-सही बता देता है कि इतनी संख्या के कण्डों से यह वस्त्र तैयार हो जायेगा । (४) डोव - तरखान अनुमान से ही सही-सही बता सकता है कि इस कुड़छी में इतनी मात्रा में वस्तु आ सकेगी। (५) मोती — सिद्धहस्त मणिकार के लिये कहा जाता है कि वह मोतियों को इस प्रकार उछाल सकता है कि वे नीचे खड़े हुए सूअर के बालों में आकर पिरोये जा सकते हैं। ( ६ ) घृत—कोई-कोई घी का व्यापारी भी इतना कुशल होता है कि वह चाहने पर गाड़ी या रथ में बैठा-बैठा ही नीचे स्थित कुंडियों में बिना एक बूँद भी इधर-उधर गिराये घी डाल देता है । (७) प्लवक (नट ) -नटों की चतुराई जगत् प्रसिद्ध है । वे रस्सी पर ही अनेकों प्रकार के खेल करते हैं किन्तु नीचे नहीं गिरते और लोग दाँतों तले अंगुली दबा लिया करते हैं । (८) तुण्णाग-कुशल दरजी कपड़े की इस प्रकार सफाई से सिलाई करता है कि सीवन किस जगह है, इसका पता नहीं पड़ता । (९) बड्ढइ( बढ़ई ) बढ़ई लकड़ी पर इतनी सुन्दर कलाकृति का निर्माण करता है तथा विभिन्न प्रकार के सुन्दर चित्र बनाता है कि वे सजीव दिखाई देते हैं। इसके अतिरिक्त लकड़ी को तराश कर इस प्रकार जोड़ता है कि जोड़ कहीं नजर नहीं आता। (१०) आपूपिक-चतुर हलवाई नाना प्रकार के व्यञ्जन बनाता है तथा तोल - नाप के बिना ही किसमें कितना द्रव्य लगेगा, इसका अनुमान कर लेता है। कोई व्यक्ति तो अपनी कला में इतने माहिर होते हैं कि दूर-दूर के देशों तक उनकी प्रसिद्धि फैल जाती है तथा वह नगर उस विशिष्ट व्यञ्जन के द्वारा भी प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है। ( ११ ) घट— कुम्भकार घड़ों का निर्माण करने में इतना चतुर होता है कि चलते हुए चाक
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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