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________________ १०८] [नन्दीसूत्र ले चला। ___मार्ग में एक घुड़सवार सामने से आ रहा था। उसका घोड़ा बिदक गया और सवार को नीचे पटक कर भागने लगा। इस पर सवार चिल्लाकर बोला-"अरे भाई! इसे डण्डे मारकर रोको।" पुण्यहीन व्यक्ति के हाथ में एक डंडा था, अतः उसने घुड़सवार की सहायता करने के उद्देश्य से सामने आते हुए घोड़े को डंडा मारा, किन्तु उसकी भाग्यहीनता के कारण डंडा घोड़े के मर्मस्थल पर लगा और घोड़े के प्राण-पखेरू उड़ गये। घोड़े का स्वामी यह देखकर बहुत क्रोधित हुआ और उसे राजा के द्वारा दंड दिलवाने के उद्देश्य से साथ हो लिया। इस प्रकार एक अपराधी और सजा दिलवाने वाले दो, तीनों नगर की ओर चले। चलते-चलते रात हो गई और नगर के द्वार बंद मिले। अतः वे बाहर ही एक सघन वृक्ष के नीचे सो गये, यह सोचकर कि प्रातःकाल द्वार खुलने पर प्रवेश करेंगे। किन्तु अभागे अपराधी को निद्रा नहीं आई और वह सोचने लगा- "भाग्य मेरा साथ नहीं देता। भला करने पर भी बुरा ही होता है। ऐसे जीवन से क्या लाभ ? मर जाऊँ तो सभी विपत्तियों से पिंड छूट जायेगा। अन्यथा न जाने और क्या-क्या कष्ट भोगने पड़ेंगे ?" यह विचार कर उसने मरने का निश्चय कर लिया और अपने दुपट्टे को उसी वृक्ष की डाल से बाँधकर फंदा बनाया और अपने गले में डालकर लटक गया। पर मृत्यु ने भी उसका साथ नहीं दिया। दुपट्टा जीर्ण होने के कारण उसके भार को नहीं झेल पाया तथा टूट गया। परिणाम यह हुआ कि वह धम्म से गिरा भी तो नटों के मुखिया पर जो ठीक उसके नीचे सो रहा था। नटों के सरदार पर ज्यों ही वह गिरा, सरदार की मृत्यु हो गई। नटों में चीख-पुकार मच गई और सरदार की मौत का कारण उस पुण्यहीन को जानकर गुस्से के मारे वे लोग भी उसे पकड़कर सुबह होते ही राजा के पास ले चले। राज-दरबार में जब यह काफिला पहुंचा, सभी चकित होकर देखने लगे। राजा ने इनके आने का कारण पूछा। सभी ने अपना-अपना अभियोग कह सुनाया। राजा ने पुण्यहीन व्यक्ति से भी जानकारी की और उसने निराशापूर्वक सभी घटनाएँ बताते हुए कहा-"महाराज! मैंने जानबूझकर कोई अपराध नहीं किया है। मेरा दुर्भाग्य ही इतना प्रबल है कि प्रत्येक अच्छा कार्य उलटा हो जाता है। ये लोग जो कह रहे हैं, सत्य है। मैं दण्ड भोगने के लिये तैयार हूँ।" राजा बहुत विचारशील था। सब बातें सुनकर उसने समझ लिया कि इस बिचारे ने कोई अपराध मन से नहीं किया है, अतः यह दण्ड का पात्र नहीं है। उसे दया आई और उसने चतुराई से फैसला करने का निर्णय किया। सर्वप्रथम बैल वाले को बुलाया गया और राजा ने उससे कहा "भाई तुम्हें अपने बैल लेने हैं, तो पहले अपनी आँखे निकालकर इसे दे दो, क्योंकि तुमने अपनी आँखों से इसे बाड़े में बैल छोड़ते हुए देखा था।" ___ इसके बाद घोड़ेवाले को बुलाकर राजा ने कहा-'अगर तुम्हें घोड़ा चाहिये तो पहले अपनी जिह्वा इसे काट लेने दो, क्योंकि दोषी तुम्हारी जिह्वा बच जाये यह न्यायसंगत नहीं। ऐसा करना अन्याय
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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