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मतिज्ञान ]
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की रक्षा व सार-संभाल करना प्रारम्भ कर दिया। कुछ समय में व्यापारी की पुत्री से उसका स्नेह हो गया। सेवक चतुर था अतः उसने कन्या से पूछ लिया- " इन सब घोड़ों में से कौन से घोड़े श्रेष्ठ हैं?" लड़की ने उत्तर दिया- " यों तो सभी घोड़े उत्तम हैं किन्तु पत्थरों से भरे हुए कुप्पे को वृक्ष पर से गिराने पर उसकी आवाज से जो भयभीत न हों वे श्रेष्ठ लक्षण - सम्पन्न हैं । "
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लड़की के कथनानुसार उस व्यक्ति ने उक्त विधि से सब घोड़ों की परीक्षा कर ली। दो घोड़े उनमें से छांट लिए । जब वेतन लेने का समय आया तो उसने व्यापारी से उन्हीं दो घोड़ों की मांग की। अश्वों का स्वामी मन ही मन घबराया कि ये दोनों ही सर्वोत्तम घोड़े ले जायेगा । अतः बोला- “ भाई ! इन घोड़ों से भी अधिक सुन्दर और हृष्ट-पुष्ट घोड़े ले जा ।" सेवक नहीं माना तब चिन्तित गृहस्वामी अन्दर जाकर अपनी पत्नी से बोला - " भलीमानस! यह सेवक तो बड़ा चतुर निकला। न जाने कैसे इसने अपने सबसे अच्छे दोनों घोड़ों की पहचान कर ली है और उन्हीं को वेतन के रूप में मांग रहा है। अतः अच्छा यही है कि इसे गृहजामाता बना लें।" यह सुनकर स्त्री नाराज हुई, कहने लगीजमाई बनाओगे? इस पर व्यापारी ने उसे समझायागये तो हमारी सब तरह से हानि होगी । हम भी इस बना लेने से घोड़े यहीं रहेंगे तथा और भी गुणयुक्त घोड़े बढ़ जायेंगे। सभी प्रकार से हमारी उन्नति होगी। दूसरे, यह अश्व-रक्षक सुन्दर युवक तो है ही, बहुत बुद्धिमान् भी है । " स्त्री सहमत हो गई और सेवक को स्वामी ने जमाई बनाकर दूरदर्शिता का परिचय दिया । यह अश्वों के व्यापारी की विनय से उत्पन्न बुद्धि के कारण हुआ ।
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'तुम्हारा दिमाग फिर गया है क्या? नौकर को 'अगर ये सर्वलक्षण युक्त दोनों घोड़े चले सेवक जैसे हो जायेंगे। किन्तु इसे जामाता
(९) ग्रन्थि - किसी समय पाटलिपुत्र में मुरुण्ड नामक राजा राज्य करता था। एक अन्य राजा ने उसे तीन विचित्र वस्तुएँ भेजीं । वे इस प्रकार थीं— 'ऐसा सूत जिसका छोर नहीं था, एक ऐसी लाठी जिसकी गाँठ का पता नहीं चलता था और एक डिब्बा जिसका द्वार दिखाई नहीं देता था। उन सब पर लाख इस प्रकार लगाई गई थी कि किसी को इनका पता नहीं चलता था । राजा सभी दरबारियों को दिखाया किन्तु कोई भी इनके विषय में नहीं बता सका।'
राजा ने तब आचार्य पादलिप्त को बुलवाया और उनसे पूछा - " भगवन्! क्या आप इन सबके विषय में बता सकते हैं?" आचार्य ने स्वीकृति देते हुए गर्म पानी मँगवाया और पहले उसमें सूत को डाल दिया । उसमें लगी हुई लाख पिघल गई और सूत का छोर नजर आने लगा। तत्पश्चात् लाठी को पानी में डाला तो गाँठवाला भारी किनारा पानी में डूब गया, जिससे यह साबित हुआ कि लाठी में अमुक किनारे पर गाँठ है । अन्त में डिब्बे को भी गरम पानी में डाला गया और लाक्षा पिघलते ही उसका द्वार दिखाई देने लगा। सभी व्यक्तियों ने एक स्वर से आचार्य की प्रशंसा की ।
तत्पश्चात् राजा मुरुण्ड ने आचार्य पादलिप्त से प्रार्थना की "देव ! आप भी कोई ऐसी कौतुकपूर्ण वस्तु तैयार कीजिए जिसे मैं बदले में भेज सकूँ ।" इस पर आचार्य ने एक तूम्बे को बड़ी सावधानी से काटा और उसमें रत्न भरकर यत्नपूर्वक काटे हुए हिस्से को जोड़ दिया। दूसरे