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मतिज्ञान]
[१०३ इसलिए मेरा ज्ञान असत्य है और इसे मन लगाकर पढ़ाया है, अतः इसका ज्ञान सत्य। आपने पक्षपात किया है।"
गुरुजी यह सुनकर चकित हुए पर कुछ समझ न पाने के कारण उन्होंने अपने विनीत शिष्य से पूछा—'वत्स क्या बात है? किन घटनाओं के आधार पर तुम्हारे गुरुभाई के मन में ऐसे विचार आए?' विनीत शिष्य ने मार्ग में घटी हुई घटनाएँ ज्यों की त्यों कह सुनाई।
गुरु ने उससे पूछा-'तुम यह बताओ कि उक्त दोनों बातों की जानकारी तुमने किस प्रकार की?' विनयवान् शिष्य ने पुनः गुरु के चरण छूकर उत्तर दिया-"गुरुदेव, आपके चरणों के प्रताप से ही मैंने विचार किया कि पैर हाथी के होने पर भी इसके मूत्र के ढंग के कारण वह हथिनी होनी चाहिए। मार्ग के दाहिनी ओर के घास व पत्रादि ही खाए हुए थे, बायीं ओर के नहीं, अतः अनुमान किया वह बायें नेत्र से कानी होगी। भारी जन-समूह के साथ हाथी पर आरूढ़ होकर जाने वाला राजकीय व्यक्ति ही हो सकता था। यह जानने के बाद हाथी से उतर कर की जाने वाली लघुशंका से यह जाना कि वह रानी थी। समीप की झाड़ी में उलझे हुए रेशमी और लाल वस्त्रतंतुओं को देखकर विचार किया कि रानी सधवा है। वह दाँया हाथ भूमि पर रखकर खड़ी हुई, इससे गर्भवती होने तथा दायाँ पैर अधिक भारी पड़ने से मैंने उसके निकट प्रसव का अनुमान किया और सारे ही निमित्तों से यह जान लिया कि उसके पुत्र उत्पन्न होगा।
दूसरी बात वृद्धा स्त्री की थी। उसके प्रश्न पूछते ही घड़े के गिरकर फूट जाने से मैंने विचार किया कि जिस मिट्टी से घड़ा बना था उसी में मिल गया है, अत: माता की कोख से जन्मा पुत्र भी उससे मिलने वाला है।"
शिष्य की बात सुनकर गुरु ने स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखते हुए उसकी प्रशंसा की। अविनीत से कहा-“देख, तू न मेरी आज्ञा का पालन करता है और न ही अध्ययन किये हुए विषय पर चिन्तन-मनन करता है। ऐसी स्थिति में सम्यक्ज्ञान का अधिकारी कैसे बन सकता है? मैं तो तुम दोनों को सदा ही साथ बैठाकर एक सरीखा विद्याभ्यास कराता हूँ किन्तु—'विनयाद्याति पात्रताम्' यानी विनय से पात्रता, सुयोग्यता प्राप्त होती है। तुझमें विनय का अभाव है, इसलिये तेरा ज्ञान भी सम्यक् नहीं है।" गुरु के वचन सुनकर अविनीत शिष्य लज्जित होकर मौन रह गया।
यह उदाहरण शिष्य की वैनयिकी बुद्धि का है। (२) अत्थसत्थे (३) लेख (४) गणित अर्थात् आदि का ज्ञान भी विनय के द्वारा होता
(५) कूप—एक भूवेत्ता अपने शिक्षक के पास अध्ययन करता था। उसने शिक्षक की प्रत्येक आज्ञा को एवं सुझाव को इतने विनयपूर्वक माना कि वह अपने विषय में पूर्ण पारंगत हो गया। अपनी चामत्कारिक, वैनयिकी बुद्धि के द्वारा प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त करने लगा।
एक बार किसी ग्रामीण ने उससे पूछा -'मेरे खेत में कितनी गहराई तक खोदने पर पानी