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________________ छत्तीसवाँ अध्ययन : जीवाजीवविभक्ति ६२१ [१४२] उनकी कायस्थिति उत्कृष्ट संख्यातकाल की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। त्रीन्द्रियकाय को न छोड़ कर लगातार त्रीन्द्रियकाय में ही उत्पन्न होने का काल कायस्थितिकाल है। १४३. अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं। तेइन्दियजीवाणं अन्तरेयं वियाहियं॥ [१४३] त्रीन्द्रियकाय को छोड़ने के बाद पुनः त्रीन्द्रियकाल में उत्पन्न होने में जघन्य अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट अनन्तकाल का अन्तर होता है। १४४. एएसिवण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो॥ [१४४] वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से इन जीवों के हजारों भेद हैं। विवेचन कर्पासास्थिमिंजकः विशेषार्थः बिनौलों (कपासियों) में उत्पन्न होने वाले त्रीन्द्रिय जीव। चतुरिन्द्रिय त्रस १४५. चउरिन्दिया उजे जीवा दुविहा ते पकित्तिया। ___ पजत्तमपजत्ता तेसिं भेए सुणेह मे॥ [१४५] जो चतुरिन्द्रियजीव हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं- पर्याप्त और अपर्याप्त। उनके भेद मुझ से सुनो। १४६. अन्धिया पोत्तिया चेव मच्छिया मसगा तहा। भमरे कीड-पयंगे य ढिंकुणे कुंकुणे तहा॥ [१४६] अन्धिका, पोत्तिका, मक्षिका, मशक (मच्छर), भ्रमर, कीट (टीड-टिड्डी) पतंगा, ढिंकुण . (पिस्सू) कुंकुण १४७. कुक्कुडे सिंगिरीडी य नन्दावत्त य विंछिए। __ डोले भिंगारी य विरली अच्छिवेहए॥ [१४७] कुक्कुड़, शृंगिरीटी, नन्दावर्त्त, बिच्छू, डोल, भुंगरीटक (झींगुर या भ्रमरी) विरली, अक्षिवेधक १४८. अच्छिले माहए अच्छिरोडए, विचित्ते चित्तपत्तए। ___ ओहिंजलिया जलकारी य नीया तन्तवगाविया॥ __ [१४८] अक्षिल, मागध, अक्षिरोडक, विचित्र, चित्र-पत्रक, ओहिंजलिया, जलकारी, नीचक और तन्तवक १४९. इह उचरिन्दिया एए ऽणेगहा एवमायओ। लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे परिकित्तिया॥ १. उत्तरा० (गुजराती भाषन्तर) भा० २, पत्र ३५३
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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