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________________ ५८२ उत्तराध्ययनसूत्र [५०] नीललेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, उससे एक समय अधिक कापोतलेश्या की जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग है। ५१. तेण परं वोच्छामि तेउलेसा जहा सुरगणाणं। भवणवइ-वाणमन्तर-जोइस-वेमाणियाणं च॥ [५१] इससे आगे भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की तेजोलेश्या की स्थिति का निरूपण करूंगा। ५२. पलिओवमं जहन्ना उक्कोसा सागरा उ दुण्हऽहिया। पलियमसंखेजेणं होई भागेण तेऊए॥ [५२] तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति एक पल्योपम है, और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग अधिक दो सागर की है। ५३. दस वाससहस्साई तेऊए ठिई जहनिया होइ। दुण्णुदही पलिओवम असंखभागं च उक्कोसा॥ [५३] तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग अधिक दो सागर है। ५४. जा तेऊए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया। जहन्नेणं पम्हाए दस उ मुहुत्तहियाई च उक्कोसा॥ [५४] तेजोलेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, उससे एक समय अधिक पद्मलेश्या की जघन्य स्थिति है, और उत्कृष्ट स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त अधिक दस सागर है। ५५. जा पम्हाए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया। जहन्नेणं सुक्काए तेत्तीस-मुहुत्तमब्भहिया॥ [५५] जो पद्मलेश्या की उत्कृष्ट स्थिति है, उससे एक समय अधिक शुक्ललेश्या की जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागर है। विवेचन-लेश्याओं की स्थिति–प्रस्तुत द्वार की गाथा ३४ से ३९ तक में सामान्य रूप से प्रत्येक लेश्या की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण किया गया है। फिर चारों गतियों की अपेक्षा से गाथा ४० से ५५ तक में व्युत्क्रम से लेश्याओं की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण है। मुहूर्ताद्ध : भावार्थ-मुहूर्तार्द्ध का बराबर समविभागरूप 'अर्द्ध' अर्थ यहाँ विवक्षित नहीं है। अतः एक समय से ऊपर और पूर्ण मुहूर्त से नीचे के सभी छोटे-बड़े अंश यहाँ विवक्षित हैं। इसी दृष्टि से मुहूर्तार्द्ध का अर्थ अन्तर्मुहूर्त किया गया है। पद्मलेश्या की स्थिति–एक मुहूर्त अधिक दस सागर की जो स्थिति गाथा ३८ में बताई है, उसमें १. उत्तरा. गुजराती भाषान्तर भा. २, पत्र ३२४ से ३२७ तक २. बृहद्वृत्ति, अ. रा. कोष, भा.६, पृ.६९१
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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