________________
बत्तीसवाँ अध्ययन : प्रमादस्थान
५५३ [६३] जो (मनोज्ञ) रसों में तीव्र आसक्ति रखता है, वह अकाल में ही विनाश को प्राप्त होता है। जैसे मांस खाने में आसक्त रागातुर मत्स्य का शरीर कांटे से बिंध जाता है।
६४. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं।
दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू रसं न किंचि अवरज्झई से॥ [६४] (इसी प्रकार) जो अमनोज्ञ रस के प्रति तीव्र द्वेष करता है, वह उसी क्षण अपने दुर्दमनीय द्वेष के कारण दुःखी होता है। इसमें रस का कोई अपराध नहीं है।
६५. एगन्तरत्ते रुइरे रसम्मि अतालिसे से कुणई पओसं।
दुक्खस्स संपीलमुवेई बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो॥ [६५] जो व्यक्ति रुचिकर रस (स्वाद) में अत्यन्त आसक्त हो जाता है और अरुचिकर रस के प्रति द्वेष करता है, वह अज्ञानी दुःखात्मक पीड़ा को (अथवा दुःखसंघात को) प्राप्त करता है। इसी कारण (मनोज्ञ-अमनोज्ञ रसों से) विरक्त (वीतद्वेष) मुनि उनमें लिप्त नहीं होता।
६६. रसाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ ऽणेगरूवे।
चित्तेहि ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्टे॥ [६६] रसों (मनोज्ञ रसों) की इच्छा के पीछे चलने वाला अनेक प्रकार के त्रस-स्थावर जीवों का घात करता है। अपने स्वार्थ को ही गुरुतर मानने वाला क्लिष्ट (रागादिपीड़ित) अज्ञानी उन्हें विविध प्रकार से परितप्त करता है और पीडा पहुँचाता है।
६७. रसाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे।
वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे॥ [६७] रस में अनुराग और परिग्रह (ममत्व) के कारण (उसके) उत्पादन, रक्षण और सन्नियोग में, तथा व्यय और वियोग होने पर उसे सुख कैसे हो सकता है ? उपभोगकाल में भी उसे तृप्ति नहीं मिलती।
६८. रसे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेिं।
___ अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं॥ [६८] रस में अतृप्त और उसके परिग्रह में आसक्त-उपसक्त (रचा पचा रहने वाला) व्यक्ति सन्तोष नहीं पाता। वह असन्तोष के दोष से दुःखी तथा लोभग्रस्त होकर दूसरों के (रसवान्) पदार्थों को चुराता है।
६९. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रसे अतित्तस्स परिग्गहे य।
___ मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से॥ [६९] रस और (उसके) परिग्रह में अतृप्त तथा (रसवान् पदार्थों की) तृष्णा से अभिभूत (बाधित) व्यक्ति दूसरों के (सरस) पदार्थों का अपहरण करता है। लोभ के दोष से उसमें कपटयुक्त असत्य (दम्भ) बढ़ जाता है। इतने (कूट कपट करने) पर भी वह दुःख से विमुख नहीं होता।