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से निवृत्त होना साधु के लिए आवश्यक है।
दशाश्रुतस्कन्ध आदि सूत्रत्रयी के २६ उद्देशक - दशाश्रुतस्कन्ध के १० उद्देश, बृहत्कल्प के ६ उद्देश और व्यवहारसूत्र के १० उद्देश । कुल मिला कर २६ उद्देश होते हैं। इन तीनों सूत्रों में साधु जीवन संबंधी आचार, आत्मशुद्धि एवं शुद्ध व्यवहार की चर्चा है । साधु को इन २६ उद्देशों के अनुसार अपना आचार, व्यवहार एवं आत्मशुद्धि का आचरण करना चाहिए । २
सत्ताईसवाँ और अट्ठाईसवाँ बोल
१८. अणगारगुणेहिं च पकष्पम्मि तहेव य। भिक्खू जयइनिच्छं से न अच्छइ मण्डले ॥
[१८] ( सत्ताईस) अनगारगुणों में और ( आचार) प्रकल्प ( आचारांग के २८ अध्ययनों) में जो भिक्षु सदैव उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रहता ।
उत्तराध्ययनसूत्र
विवेचन — सत्ताई अनगारगुण - (१-५) पांच महाव्रतों का सम्यक् पालन करना, (६-१०) पांचों इन्द्रियों का निग्रह, (११-१४) क्रोध - मान-माया - लोभ - विवेक, (१५) भावसत्य (अन्तःकरण शुद्ध रखना), (१६) करणसत्य, (वस्त्र - पात्रदि का भलीभांति प्रतिलेखन आदि करना), (१७) योगसत्य, (१८) क्षमा, (१९) विरागता, (२०) मनः समाधारणता ( मन की शुभ प्रवृत्ति), (२१) वचनसमाधारणता (वचन की शुभ प्रवृत्ति), (२२) कायसमाधारणता, (२३) ज्ञानसम्पन्नता, (२४) दर्शनसम्पन्नता, (२५) चारित्रसम्पन्नता, (२६) वेदनाधिसहन और (२७) मारणान्तिकाधिसहन ।
किसी आचार्य ने २७ अनगारगुणों में चार कषायों के त्याग के बदले सिर्फ लोभत्याग माना है, तथा शेष के बदले रात्रिभोजन त्याग, छहकाय के जीवों की रक्षा, संयमयोगयुक्तता माने हैं । ३
अट्ठाईस आचारप्रकल्प अध्ययन – मूलसूत्र में केवल 'प्रकल्प' शब्द मिलता है। किन्तु उससे 'आचारप्रकल्प' शब्द ही लिया जाता है। आचार का अर्थ है – आचारांग ( प्रथम अंगसूत्र ), और उसका प्रकल्प अर्थात् — अध्ययन - विशेष निशीथ — आचार - प्रकल्प | जिसमें मुनिजीवन के आचार का वर्णन हो वे आचारांग और निशीथसूत्र हैं । २८ अध्ययन इस प्रकार होते हैं— आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्ध के ९ अध्ययन(१) शस्त्रपरिज्ञा, (२) लोकविजय, (३) शीतोष्णीय, (४) सम्यक्त्व, (५) लोकसार, (६) धूताऽध्ययन, (७) महापरिज्ञा (लुप्त), (८) विमोक्ष, (९) उपधानश्रुत । द्वितीय श्रुतस्कन्ध के १६ अध्ययन – (१) पिण्डैषणा, (२) शय्या (३) ईर्या, (४) भाषा, (५) वस्त्रैषणा, (६) पात्रैषणा, ( ८-१४) सप्त सप्ततिका, (सात स्थानादि एक-एक) (१५) भावना और (१६) विमुक्ति ।
१. (क) प्रश्नव्याकरण संवरद्वार,
२. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ६१६, (ख) दशाश्रुत. बृहत्कल्प एवं व्यवहार सूत्र
३.
(ख) समवायांग समवाय २५, (ग) आचारांग २ / १५
(क) समवायांग समवाय २७
(ख) वयछक्कमिंदियाणं च, निग्गहो भाव-करणसच्चं च । खमया विरागया वि य, मयमाईणं णिरोहो य ।
कायाण छक्कजोगम्मि, जुत्तया वेयणाहियासणया । तह मारणंतियहियासणया एए Sणगारगुणा ॥
—बृहद्वृत्ति पत्र ६१६