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________________ तीसवाँ अध्ययन : तपोमार्गगति अविचार- —वह है, जिसमें करवट आदि की कायचेष्टाएँ न हों। यह पादपोपगमन होता है। 'मूलाराधना' अनुसार जिसकी मृत्यु अनागाढ (तात्कालिक होने वाली नहीं) है, ऐसे पराक्रमयुक्त साधक का भक्तप्रत्याख्यान सविचार कहलाता है और मृत्यु की आकस्मिक (आगाढ) सम्भावना होने पर जो भक्तप्रत्याख्यान किया जाता है, वह अविचार कहलाता है। इसके तीन भेद हैं- निरुद्ध ( रोगातंक से पीडित होने पर), निरुद्धतर (मृत्यु का तात्कालिक कारण उपस्थित होने पर) और परमनिरुद्ध ( सर्पदंश आदि कारणों से वाणी रुक जाने पर)। दिगम्बर परम्परा में इसके लिए 'प्रायोपगमन' शब्द मिलता है। वृक्ष कट कर जिस अवस्था में गिर जाता है, उसी स्थिति में पड़ा रहता है, उसी प्रकार गिरिकन्दरा आदि शून्य स्थानों में किया जाने वाला पादपोपगमन अनशन में भी जिस आसन का उपयोग किया जाता है, अन्त तक उसी आसन में स्थिर रहा जाता है। आसन, करवट आदि बदलने की कोई चेष्टा नहीं की जाती । पादपोपगमन अनशनकर्ता अपने शरीर शुश्रूषा न तो स्वयं करता है और न ही किसी दूसरे से करवाता है । प्रकारान्तर से मरणकालीन अनशन के दो प्रकार हैं— सपरिकर्म (बैठना, उठना, करवट बदलना आदि परिकर्म से सहित) और अपरिकर्म । भक्तप्रत्याख्यान और इंगिनीमरण 'सपरिकर्म' होते हैं और पादपोपगमन नियमत: 'अपरिकर्म' होता है । अथवा संलेखना के परिकर्म से सहित और उससे रहित को भी 'सपरिकर्म' और 'अपरिकर्म' कहा जाता है। संल्लेखना का अर्थ है - विधिवत् क्रमशः अनशनादि तप करते हुए शरीर, कषायों, इच्छाओं एवं विकारों को क्रमशः क्षीण करना, अन्तिम मरणकालीन अनशन की पहले से ही तैयारी रखना । निर्हारिम-अनिर्हारिम अनशन अन्य अपेक्षा से भी अनशन के दो प्रकार हैं— निर्धारिम और अनिर्हारिम । वस्ती से बाहर पर्वत आदि पर जाकर जो अन्तिम समाधि-मरण के लिए अनशन किया जाता है और जिसमें अन्तिम संस्कार की अपेक्षा नहीं रहती, वह अनिर्धारिम है और जो वस्ती में ही किया जाता है, अत एव अन्तिम संस्कार की आवश्यकता होती है, वह निर्धारिम है । २. अवमौदर्य (ऊनोदरी ) तप: स्वरूप और प्रकार १४. ओमोयरियं पंचहा समासेण वियाहियं । दव्वओ खेत्त-कालेणं भावेणं पज्जवेहि य ॥ १. ५०१ [१४] संक्षेप में अवमौदर्य (ऊनोदरी ) तप द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यायों की अपेक्षा से पांच प्रकार का कहा गया है । १५. जो जस्स उ आहारो तत्तो ओमं तु जो करे । जहन्त्रेणेगसित्थाई एवं दव्वेण ऊ भवे ॥ (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ६०२ - ६०३ (ख) मूलाराधना ८/२०४२, ४३, ६४ (ग) वही, विजयोदयावृत्ति ८ / २०६४ (घ) दुविहं तु भत्तपच्चक्खाणं सयविचारमथ अविचारं । सविचारमणागाढं, मरणे सपरिक्कमस्स हवे । तत्थ अविचारभत्तपइण्णा मरणम्मि होइ आगाढो । अपरिक्कम्मस्स मुणिणो, कालम्मि असंपुहुत्तम्मि ॥ - मूलाराधना २/६५, ७/२०११, २०१३, २०१५, २०२१ २०२२ (ङ) औपपातिक सूत्र १९ (च) समवायांग समवाय १७
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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