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तीसवाँ अध्ययन : तपोमार्गगति
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प्रभावना, (२०) आलस्यत्याग, (२१) कर्मविशुद्धि, (२२) मिथ्यादृष्टियों में भी सौम्यभाव, (२३) मुक्तिमार्गप्रकाशन, (२४) जिनाज्ञाराधना, (२५) देहलाघव, (२६) शरीर के प्रति अनासक्ति, (२७) रागादि का उपशम, (२८) आहार परिमित होने से शरीर में नीरोगता, (२९) सन्तोषवृद्धि, (३०) आहारादि- आसक्ति क्षीणता । १
बाह्य तप के प्रयोजन— तत्त्वार्थसूत्र श्रुतसागरीय वृत्ति में बाह्य तप के विभिन्न प्रयोजन बताए हैं। जैसे कि ( १ ) अनशन के प्रयोजन — रोगनाश, संयमदृढता, कर्मफल- विशोधन, सद्ध्यानप्राप्ति और शास्त्राभ्यास में रुचि । ( २ ) ऊनोदरिका के प्रयोजन-वात-पित्त-कफादिजनित दोषोपशमन, ज्ञान-ध्यानादि की प्राप्ति, संयम में सावधानी, ( ३ ) वृत्तिसंक्षेप – भोज्य वस्तुओं की इच्छा का निरोध, भोजनचिन्ता- नियन्त्रण । ( ४ ) रसपरित्याग—इन्द्रियनिग्रह, निद्राविजय और स्वाध्याय - ध्यानरुचि । (५) विविक्तशय्यासन — ब्रह्मचर्यसिद्धि, स्वाध्याय-ध्यानसिद्धि और बाधाओं से मुक्ति, (६) कायक्लेश – शरीरसुख - वाञ्छा से मुक्ति, कष्टसहिष्णुता का स्थिर स्वभाव, धर्मप्रभावना । २
मणईच्छिय-चित्तत्थो — बृहद्वृत्ति के अनुसार — (१) मनोवोञ्छित विचित्र प्रकार का फल देने वाला, (२) विचित्र स्वर्गापवर्गादि के या तेजोलेश्यादि के प्रयोजन वाला मन को अभीष्ट तप । ३
अनशन : प्रकार, स्वरूप— अनशन का अर्थ है – आहारत्याग । वह मुख्यतया दो प्रकार का है - इत्वरिक और आमरणकाल ( यावत्कथिक) । इत्वरिक अनशन तप देश, काल, परिस्थिति आदि को ध्यान में रखते हुए शक्ति के अनुसार अमुक समय - विशेष की सीमा बाँध कर किया जाता है। भगवान् महावीर के शासन में दो घड़ी से लेकर छह मास तक की सीमा है। औपपातिकसूत्र में इसके चौदह भेद बताए गए
१. चतुर्थभक्त — एक उपवास २. षष्ठभक्त—दो दिन का उपवास (बेला) ३. अष्टमभक्त — तीन दिनका उपवास (तेला) ४. दशमभक्त — चार दिन का उपवास (चौला) ५. द्वादशभक्त—पांच दिन का उपवास (पंचौला) ६. चतुर्दशभक्त — छह दिन का उपवास
७. षोडशभक्त सात दिन का उपवास
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९.
अर्धमासिकभक्त- १५ दिन का उपवास
मासिकभक्त मासखमण – १ मास का उपवास द्वैमासिकभक्त — दो मास का उपवास
१. मूलाराधना ३ / २३७-२४४
३.
(क) बृहद्वृत्ति, पत्र ६०१
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११. त्रैमासिकभक्त——– तीन मास का उपवास १२. चातुर्मासिकभक्त—४ मास का तप
१३. पाञ्चमासिकभक्त-५ मास का उपवास १४. षाण्मासिकतप—६ मास का उपवास
प्रस्तुत गाथा (सं.९) में इत्वरिक अनशन छह प्रकार का बतलाया गया है—
( १ ) श्रेणितप— उपवास से लेकर ६ महीने तक क्रमपूर्वक जो तप किया जाता है, वह श्रेणितप है। इसकी अनेक श्रेणियाँ हैँ। यथा— उपवास, बेला, यह दो पदों का श्रेणितप है । उपवास, बेला, तेला, चौलायह चार पदों का श्रेणितप है ।
(२) प्रतरतप— एक श्रेणितप को जितने क्रमों – प्रकारों से किया जा सकता है, उन सब क्रमों को मिलाने से प्रतरतप होता है, उदाहरणार्थ — १, २, ३, ४ संख्यक उपवासों से चार प्रकार बनते हैं।
२. तत्त्वार्थ. श्रुतसागरीय वृत्ति ९ / २०
(ख) उत्तरा. गुजराती भाषान्तर भा. २, पत्र २६५