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________________ उनतीसवाँ अध्ययन : सम्यक्त्वपराक्रम ४८१ ४८. मुत्तीए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? मुत्तीए णं अकिंचणं जणयइ। अकिंचणे य जीवे अत्थलोलाणं अपत्थणिजो भवइ। [४८ प्र.] भंते ! मुक्ति (निर्लोभता) से जीव क्या प्राप्त करता है ? [उ.] मुक्ति से जीव अकिंचनता प्राप्त करता है। अकिंचन जीव अर्थलोलुपी जनों द्वारा अप्रार्थनीय हो जाता है। ४९. अजवयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? अजवयाए णं काउन्जुययं, भावुज्जुययं, भासुजुययं अविसंवायणं जणयइ। अविसंवायणसंपन्नाए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ। [४९ प्र.] भंते ! ऋजुता (सरलता) से जीव क्या प्राप्त करता है ? [उ.] ऋजुता से जीव काया की सरलता, भावों (मन)की सरलता, भाषा की सरलता और अविसंवादता को प्राप्त करता है। अविसंवाद-सम्पन्नता से जीव (शुद्ध), धर्म का आराधक होता है। ५०. मद्दवयाए णं भंते जीवे किं जणयइ ? मद्दवयाए णं अणुस्सियत्तं जणयइ। अणुस्सियत्ते णं जीवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठ मयट्ठाणाई निट्ठावेइ। [५० प्र.] भंते ! मृदुता से जीव क्या प्राप्त करता है ? ___ [उ.] मृदुता से जीव अनुद्धत भाव को प्राप्त होता है, अनुद्धत जीव मृदु-मार्दव भाव से सम्पन्न होकर आठ मदस्थानों को नष्ट कर देता है। विवेचन–क्षान्ति आदि चार : स्वरूप और उपलब्धि-क्षान्ति के दो अर्थ हैं—क्षमा और सहिष्णुता। क्षमा का लक्षण है—प्रतीकार करने की शक्ति होने पर भी प्रतीकार न करके अपकार सह लेना। सहिष्णुता का अर्थ है-तितिक्षा। दोनों प्रकार की क्षमता बढ़ जाने पर व्यक्ति परीषह-विजयी बन जाता है। मुक्ति-अर्थात् निर्लोभ के दो परिणाम हैं-अकिंचनता अर्थात्-निष्परिग्रहत्व, एवं चोर आदि अर्थलोभी लोगों द्वारा अप्रार्थनीयता। ऋजुता के चार परिणाम सरलता से काया (कायचेष्टा), भाषा और भावों में सरलता तथा अविसंवादन अर्थात् दूसरों को वंचन न करना। ऐसा होने पर ही जीव सद्धर्माराधक होता है।३ । मृदुता की उपलब्धियाँ तीन-(१) अनुद्धतता, (२) द्रव्य से कोमलता और भाव से नम्रता और (३) अष्ट मदस्थानों का अभाव। क्षान्ति आदि क्रोधिादि पर विजय के परिणाम हैं । जाति, कुल, बल, रूप, तप, लाभ, श्रुत और ऐश्वर्य का मद, इन ८ मद के हेतुओं को अष्ट मदस्थान कहते हैं। १. उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका, भा. ४ २. बृहवृत्ति, पत्र ५९०, मुक्ति : निर्लोभता। ३. तुलना-चउव्विहे सच्चे प.तं.-काउजुयया, भाउजुयया, भासुज्जुयया, अविसंवायणाजोगे। ४. (क) तुलना-सूत्र ६७ से ७०, (ख) स्थानांग स्था. ४/१/२५४
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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