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________________ ४७२ उत्तराध्ययनसूत्र २६ से २८. संयम, तप एवं व्यवदान के फल २७–संजमेणं भन्ते! जीवे किं जणयइ? संजमेणं अणण्हयत्तं जणयइ। [२७ प्र.] भन्ते ! संयम से जीव क्या प्राप्त करता है? [उ.] संयम से जीव अनाश्रवत्व (-आश्रवनिरोध) प्राप्त करता है। २८-तवेणं भन्ते! जीवे किं जणयइ? तवेणं वोदाणं जणयइ॥ [२८ प्र.1 तप से जीव को क्या प्राप्त होता है? [उ.] तप से जीव (पूर्वसंचित कर्मों का क्षय करके) व्यवदान—विशुद्धि प्राप्त करता है। २९—वोदाणेणं भन्ते! जीवे किं जणयइ? वोदाणेणं अकिरियं जणयइ। अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वाएइ, सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ॥ [२९ प्र.] भन्ते ! व्यवदान से जीव को क्या उपलब्धि होती है? [उ.] व्यवदान से जीव अक्रिया को प्राप्त करता है। अक्रियतासम्पन्न होने के पश्चात् जीव सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त हो जाता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है और समस्त दुःखों का अन्त करता है। विवेचन-मोक्ष की त्रिसूत्री : संयम, तप और व्यवदान–संयम से नये कर्मों का आगमन (आश्रव) रुक जाता है, तप से पूर्वबद्ध कर्मों का क्षय हो जाता है तथा (व्यवदान) आत्मविशुद्धि हो जाती है और व्यवदान से जीव के मन, वचन और काया की क्रियाएँ रुक जाती हैं, आत्मा अक्रिय हो जाती है और सिद्ध बुद्ध मुक्त परिनिर्वृत्त होकर सर्व दुःखों का अन्त कर लेता है। अतः ये तीनों क्रमशः मोक्षमार्ग के प्रमुख सोपान हैं। २९. सुखशात का परिणाम ३०. –सुहसाएणं भन्ते! जीवे किं जणयइ? सुहसाएणं अणुस्सुयत्तं जणयइ। अणुस्सुयाए णं जीवे अणुकम्पए, अणुब्भडे, विगयसोगे, चार -मोहणिज कम्मं खवेइ॥ [३० प्र.] भगवन् ! सुखशात से जीव को क्या प्राप्त होता है? [उ.] सुखशात से विषयों के प्रति अनुत्सुकता पैदा होती है। अनुत्सुकता से जीव अनुकम्पा करने वाला, अनुद्भट (अनुद्धत), एवं शोक रहित होकर चारित्रमोहनीयकर्म का क्षय करता है। विवेचन–सुखशात एवं उसका पंचविध परिणाम–सुखशात का अर्थ है-शब्दादि वैषयिक सुखों के प्रति शात अर्थात् अनासक्ति—अगृद्धि (१) विषयों के प्रति अनुत्सुकता, (२) अनुकम्पापरायणता, (३) उपशान्तता, (४) शोकरहितता एवं अन्त में (५) चारित्रमोहनीयक्षय, यह क्रम है। १. उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका भा. ४. पृ. २८३-२८४
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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