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एगुणतीसइमं अज्झयणं : समत्तपरक्कमे
उनतीसवाँ अध्ययन : सम्यक्त्वपराक्रम सम्यक्त्व-पराक्रम से परिनिर्वाण प्राप्ति
१-सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु सम्मत्तपरक्कमे नाम अज्झयणे समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए, जं सम्मं सद्दहित्ता, पत्तियाइत्ता, रोयइत्ता, फासइत्ता, पालइत्ता, तीरइत्ता, किट्टइत्ता सोहइत्ता, आराहइत्ता, आणाए अणपालइत्ता बहवे जीवा सिज्झन्ति, बुज्झन्ति, मुच्चन्ति, परिनिव्वायन्ति, सव्वदुक्खाणमन्तं करेन्ति।
तस्स णं अयमढे एवमाहिजइ, तं जहा
१.संवेगे २. निव्वेए ३. धम्मसद्धा ४. गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया ५. आलोयणया ६. निन्दणया ७. गरहणाय ८. सामाइए ९. चउव्वीसत्थए १०. वन्दणए ११. पडिक्कमणे १२. काउस्सग्गे १३. पच्चक्खाणे १४. थवथुइमंगले १५. कालपडिलेहणया १६. पायच्छित्तकरणे १७. खमावणया १८. सज्झाए १९. वायणया २०. पडिपुच्छणया २१. परियट्टणया २२. अणुप्पेहा २३. धम्मकहा २४. सुयस्स आराहणया २५. एगग्गमणसंनिवेसणया २६. संजमे २७. तवे २८. वोदाणे २९. सुहसाए ३०. अप्पडिबद्धया ३१. विवित्तसयणासणसेवणया ३२. विणियट्टणया ३३. संभोगपच्चक्खाणे ३४. उवहिपच्चखाणे ३५. आहारपच्चक्खाणे ३६. कसायपच्चक्खाणे ३७. जोगपच्चक्खाणे ३८. सरीरपच्चक्खाणे ३९. सहायपच्चक्खाणे ४०. भत्तपच्चक्खाणे ४१. सब्भावपच्चक्खाणे ४२. पडिरूवया ४३. वेयावच्चे ४४. सव्वगुणसंपण्णया ४५. वीयरागया ४६. खन्ती ४७. मुत्ती ४८. अजवे ४९. मद्दवे ५०. भावसच्चे ५१. करणसच्चे ५२.जोगसच्चे ५३. मणगुत्तया ५४. वयगुत्तया ५५. कायगुत्तया ५६. मणसमाधारणया ५७. वयसमाधारणया ५८. कायसमाधारणया५९. नाणसंपन्नया ६०.दसणसंपन्नया ६१. चरित्तसंपन्नया ६२. सोइन्दियनिग्गहे ६३. चक्खिन्दियनिग्गहे ६४. घाणिन्दियनिग्गहे ६५. जिब्भिन्दियनिग्गहे ६६. फासिन्दियनिग्गहे ६७. कोहविजए ६८. माणविजए ६९. मायाविजए ७०. लोहविजए ७१. पेज्जदोसमिच्छादंसणविजए ७२. सेलेसी ७३. अकम्मया।
[१] आयुष्मन् ! भगवान् ने जो कहा है, वह मैंने सुना है-इस 'सम्यक्त्व पराक्रम' नामक अध्ययन में काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान् महावीर ने जो प्ररूपणा की है, उस पर सम्यक् श्रद्धा से, प्रतीति से, रुचि से, स्पर्श से, पालन करने से, गहराई से जानने (या भलीभांति पार उतरने) से, कीर्तन (गुणानुवाद) करने से, आराधना करने से, आज्ञानुसार अनुपालन करने से, बहुत-से जीव सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त होते हैं और समस्त दुःखों का अन्त करते हैं।
उसका यह अर्थ है, जो इस रूप में कहा जाता है। जैसे कि
(१) संवेग, (२) निर्वेद, (३) धर्मश्रद्धा, (४) गुरु और साधर्मिक की शुश्रूषा, (५) आलोचना, (६) निन्दना, (७) गर्हणा, (८) सामायिक, (९) चतुर्विंशति-स्तव, (१०) वन्दना, (११) प्रतिक्रमण,