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________________ ४४७ अट्ठाईसवाँ अध्ययन : मोक्षमार्गगति दशविधरुचिरूप सम्यक्त्व के दस प्रकार १६. निसग्गुवएसरुई आणारुई सुत्त-बीयरुइमेव। अभिगमवित्थाररुई किरया-संखेव-धम्मरुई॥ [१६] (सम्यक्त्व—सम्यग्दर्शन के दस प्रकार हैं-) निसर्गरुचि, उपदेश्यारुचि, आज्ञारुचि, सूत्ररुचि, बीजरुचि, अभिगमरुचि, विस्ताररुचि, क्रियारुचि और धर्मरुचि। १७. भूयत्थेणाहिगया जीवाजीवा य पुण्णपावं च। सहसम्मुइयासवसंवरो य रोएइ उ निसग्गो॥ [१७] (दूसरे के उपदेश के बिना ही) अपनी ही मति से जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव और संवर आदि तत्त्वों को यथार्थ रूप से ज्ञात कर श्रद्धा करना निसर्गरुचि सम्यक्त्व है। १८. जो जिणदिढे भावे चउविहे सद्दहाइ सयमेव। एमेव नऽन्नह त्ति य निसग्गरुइ त्ति नायव्वो॥ [१८] जो जिनेन्द्र भगवान् द्वारा उपदिष्ट (अथवा दृष्ट) (द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन) चार प्रकारों से (अथवा नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव, इन चार प्रकारों से) विशिष्ट भावों (-पदार्थों) के प्रति स्वयमेव (दूसरों के उपदेश के बिना), यह ऐसा ही है, अन्यथा नहीं; ऐसी (स्वतःस्फूर्त) श्रद्धा (रुचि) रखता है, उसे निसर्गरुचि वाला जानना चाहिए। १९. एए चेव उ भावे उवइढे जो परेण सद्दहई। छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइ त्ति नायव्वो॥ [१९] जो अन्य—छमस्थ अथवा जिनेन्द्र के द्वारा उपदेश प्राप्त कर, इन्हीं जीवादि भावों (पदार्थों) पर श्रद्धा रखता है, उसे उपदेशरुचि सम्यगदृष्टि जानना चाहिए। २०. रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ। आणाए रोयंतो से खलु आणारुई नाम॥ ___[२०] जिस (महापुरुष–आप्तपुरुष) के राग, द्वेष, मोह और अज्ञान दूर हो गए हैं, उनकी आज्ञा से जो तत्त्वों पर रुचि रखता है, वह आज्ञारुचि है। २१. जो सुत्तमहिजन्तो सुएण ओगाहई उ सम्मतं। __अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायव्वो॥ [२१] अंग (-प्रविष्ट) अथवा अंगबाह्य श्रुत में अवगाहन करता हुआ जो सम्यक्त्व को प्राप्त करता है, उसे सूत्ररुचि जानना चाहिए। २२. एगेण अणेगाइं पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं। उदए व्व तेल्लबिन्दू सो बीयरुइ त्ति नायव्वो॥ [२२] जैसे जल में तेल की बूंद फैल जाती है, वैसे ही जो सम्यक्त्व एक पद (तत्त्वबोध) अनेक पदों में फैलता है, उसे बीजरुचि समझना चाहिए।
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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