________________
अट्ठावीसइमं अज्झयणं : मोक्रवमग्गगई
अट्ठाईसवाँ अध्ययन : मोक्षमार्गगति मोक्षमार्गगति : माहात्म्य और स्वरूप
१. मोक्खमग्गगई तच्चं सुणेह जिणभासियं।
घउकारणसंजुत्तं नाण-दसणलक्खणं॥ [१] (ज्ञानादि) चार कारणों से युक्त, ज्ञान-दर्शन लक्षणरूप, जिनभाषित, सत्य (-सम्यक्) मोक्षमार्ग की गति को सुनो।
२. नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा।
एस मग्गो त्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिहिं॥ [२] वरदर्शी (-सत्य के सम्यक् द्रष्टा) जिनवरों ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र तथा तप; इस (चतुष्टय) को मोक्ष का मार्ग प्ररूपित किया है।
३. नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा।
एयं मग्गमणुप्पत्ता जीवा गच्छन्ति सोग्गइं॥. [३] ज्ञान, दर्शन, चारित्र तथा तप, इस (मोक्ष-) मार्ग पर आरूढ जीव सद्गति को प्राप्त करते हैं।
विवेचन-मोक्ष-मार्ग-गति : विश्लेषण-मोक्ष का लक्षण है-अष्टविध कर्मों का सर्वथा उच्छेद। उसका मार्ग, तीर्थंकरप्रतिपादित ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप रूप है। उक्त मोक्षमार्ग में वास्तविक गति करना 'मोक्षमार्गगति' है।
नाणदंसणलक्खणं : तात्पर्य-जब ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इन चार से युक्त मोक्षमार्ग है, तब उसे ज्ञान-दर्शन-लक्षण वाला ही क्यों कहा गया? इसका समाधान बृहवृत्तिकार ने किया है कि जिसमें सम्यक् ज्ञान-दर्शन का अस्तित्व होगा, उसकी मुक्ति अवश्यम्भावी है। शास्त्रकार ने इन दोनों को मुक्ति के मूल कारण बताने के लिए यहाँ अंकित किया है । अथवा समस्त कर्मक्षय रूप मोक्ष के मार्ग में शुद्ध गति अर्थात् प्राप्तिमोक्षमार्गगति है। वह ज्ञान-दर्शन रूप है, अर्थात्-विशेषसामान्योपयोगरूप है।
____ मोक्षमार्ग-प्रस्तुत अध्ययन में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इन चारों को मोक्षमार्ग बताया है, जबकि तत्त्वार्थसूत्र में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र, इन तीनों को ही मोक्षमार्ग बताया है। इसका कारण यह है कि यद्यपि तप चारित्र का ही एक अंग है, तथापि कर्मक्षय करने का विशिष्ट साधन होने के कारण तप को यहाँ पृथक् स्थान दिया गया है। अत: यह केवल अपेक्षाभेद है। विभिन्न दर्शनों और धर्मों ने अन्यान्य प्रकार १. (क) बृहद्वृत्ति, अभि. रा. कोष भा. ६, पृ. ४४८ (ख) उत्तरा. गुजराती भाषान्तर भा. २ २. बृहद्वृत्ति, पत्र ५५६