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________________ - उत्तराध्ययन /५२सुमति ने कहा-तात! मैं पूर्व जन्म में ब्राह्मण था। मैं प्रतिपल-प्रतिक्षण परमात्मा के ध्यान में तल्लीन रहता था, जिससे आत्मविद्या का चिन्तन मुझ में पूर्ण विकसित हो चुका था। मैं सदा साधना में रत रहता था। मुझे अतीत के लाखों जन्मों की स्मृति हो आई। धर्मत्रयी में रहे हुए मानव को जाति-स्मरण ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। मुझे यह आत्मज्ञान पहले से ही प्राप्त है। इसलिए अब मैं आत्म-मुक्ति के लिए प्रयास करूँगा।१५८ उसके बाद सुमति अपने पिता भार्गव को मृत्यु का रहस्य बताता है। इस प्रकार इस संवाद में वेदज्ञान की निरर्थकता बताकर आत्मज्ञान की सार्थकता सिद्ध की है। प्रस्तुत संवाद के सम्बन्ध में विन्टरनीत्स का अभिमत है-यह बहुत कुछ सम्भव है-यह संवाद जैन और बौद्ध परम्परा का रहा होगा। उसके बाद उसे महाकाव्य या पौराणिक साहित्य में सम्मिलित कर लिया गया हो!१५९ इस प्रकार हम देखते हैं कि उत्तराध्ययन के चौदहवें अध्ययन में जो वर्णन है, उसकी प्रतिच्छाया वैदिक और बौद्ध परम्परा के ग्रन्थों में भी प्राप्त है। उदाहरण के रूप में देखिए "अहिज्ज वेए परिविस्स विप्पे, पुत्ते पडिट्ठप्प गिहंसि जाया ! भोच्चाण भोए सह इत्थियाहि, आरण्णगा होह मुणी पसत्था॥" [उ. १४/९] तुलना कीजिए "वेदानधीत्य ब्रह्मचर्येण पुत्र! पुत्रानिच्छेत् पावनार्थं पितृणाम्। अग्नीनाधाय विधिवच्चेष्टयज्ञो, वनं प्रविश्याथ मुनिळूभूषेत्॥" [शान्तिपर्व-१७५/६; २७७/६; जातक-५०९/४] "वेया अहीया न भवन्ति ताणं, भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेणं। जाया य पुत्ता न हवन्ति ताणं, को णाम ते अणुमन्नेज एयं॥" [उत्तरा. १४/१२] तुलना कीजिए "वेदा न सच्चा न च वित्तलाभो, न पुत्तलाभेन जरं विहन्ति। गन्धे रमे मुच्चनं आहु सन्तो, सकम्मुना होति फलूपपत्ति ॥" [जातक–५०९/६] "इमं च मे इत्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं। .. तं एवमेवं लालप्पमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पमाए ?॥"[उत्तरा.१४/१५] तुलना कीजिए "इदं कृतमिदं कार्यमिदमन्यत् कृताकृतम्। एवमीहासुखासक्तं, मृत्युरादाय गच्छति ॥" [शान्ति. १७५/२०] विस्तारभय से हम उन सभी गाथाओं का अन्य ग्रन्थों के आलोक में तुलनात्मक अध्ययन नहीं दे रहे हैं। विशेष जिज्ञासु लेखक का "जैन आगम साहित्यः मनन और मीमांसा" ग्रन्थ में तुलनात्मक अध्ययन शीर्षक निबन्ध देखें। १५८. मार्कण्डेय पुराण-१०/३७, ४४ 848. The Jainas in the History of Indian Literature, P. 7.
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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