________________
छव्वीसवाँ अध्ययन : सामाचारी
४१७
विवेचन-पौरुषी शब्द का विश्लेषण और कालमान-'पौरुषी' शब्द पुरुष शब्द से निष्पन्न है। पुरुष शब्द के दो अर्थ होते हैं -पुरुषशरीर और शंकु। फलितार्थ यह हुआ कि पुरुष शरीर या शंकु से जिस काल का माप होता हो, वह पौरुषी है।
पुरुषशरीर में पैर से जानु (घुटने) तक का और शंकु का प्रमाण २४-२४ अंगुल होता है। जिस दिन किसी भी वस्तु की छाया वस्तु के प्रमाण के अनुसार होती है, वह दिन दक्षिणायन का प्रथम दिन होता है। युग के प्रथम वर्ष (सूर्य-वर्ष) में श्रावण कृष्णा १ को शंकु और जानु की छाया अपने ही प्रमाण के अनुसार २४ अंगुल पड़ती है। १२ अंगुल की छाया को एक पाद (पैर) माना गया है। अतः शंकु और जानु की २४ अंगुल की छाया को दो पाद माना गया है। फलितार्थ यह हुआ कि पुरुष अपने दाहिने कान के सम्मुख सूर्यमण्डल को रख कर खड़ा रहे, फिर आषाढ़ी पूर्णिमा को अपने घुटने तक की छाया दो पाद प्रमाण हो, तब एक प्रहर होता है। यों सर्वत्र समझ लेना चाहिए।
वर्ष में दो अयन होते हैं - दक्षिणायन और उत्तरायण। दक्षिणायन श्रावण मास से प्रारम्भ होता है और उत्तरायण माघ मास से। दक्षिणायन में छाया बढ़ती है और उत्तरायण में कम होती है। यन्त्र इस प्रकार
+
+
+
به
الله
+
به
الله
+
w vvvå å å
و
الله
+
و
و
+
+
و
पौरुषी-छाया का प्रमाण
पादोन ( औरुषी छाया का प्रमाण मास पाद अंगुल __ कुल वृद्धि
अंगुल १. आषाढ़ पूर्णिमा २- ० - २-० + २. श्रावण पूर्णिमा २
२-४ +
२-१० ३. भाद्रपद पूर्णिमा २
२-८ + ४. आश्विन पूर्णिमा
३-० + ५. कार्तिक पूर्णिमा ६. मृगसिर पूर्णिमा
३-८ + ७. पौष पूर्णिमा
४-० +
४-१० ८. माघ पूर्णिमा
३-८ + ९. फाल्गुन पूर्णिमा १०. चैत्र पूर्णिमा ११. वैशाख पूर्णिमा
२-८ + ८ - १२. ज्येष्ठ पूर्णिमा
४ - २-४ + ६ = २-१० २०. तम्मेव य नक्खत्ते गयणचउब्भागसावसेसंमि।
वेरत्तियं पि कालं पडिलेहित्ता मुणी कुज्जा।। १. शंकु:पुरुषशब्देन, स्याद्देहः पुरुषस्य वा। निष्पन्न पुरुषात् तस्मात्पौरुषीत्यपि सिद्धयति। -काललोकप्रकाश २८/९९२ २. चतुर्विंशत्यंगुलस्य शंकोश्छाया यथोदिता। चतुर्विंशत्यंगुलस्य जानोरपि तथा भवेत्।।। स्वप्रमाणं भवेच्छाया, यदा सर्वस्य वस्तुनः। तदा स्यात् पौरुषी, याम्या-मानस्य प्रथमे दिने ।।
-काललोकप्रकाश २८/१०१,९९३
به
+
و
AU
الله
+
به
J
+
به
२
+