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________________ ४१४ उत्तराध्ययनसूत्र जो ज्ञान की वर्तना (पुनरावृत्ति), संधान (त्रुटित ज्ञान को पूरा करने) और ग्रहण-नया ज्ञान सम्पादन करने के लिए की जाती है। दर्शनार्थ उपसम्पदा वह है जो दर्शन की वर्तना (पुनः पुनः चिन्तन), संधान (स्थिरीकरण) और ग्रहण (शास्त्रों में उक्त दर्शन विषयक चिन्तन का अध्ययन) करने के लिए स्वीकार की जाती है। चारित्रार्थ उपसम्पदा वह है, जो वैयावृत्य की, तपश्चर्या की या किसी विशिष्ट साधना की आराधना के लिए अंगीकार की जाती है। दिन के चार भागों में उत्तरगुणात्मक दिनचर्या ८. पुविल्लंमि चउब्भाए आइच्चमि समुट्ठिए। भण्डयं पडिलेहित्ता वन्दित्ता य तओ गुरुं॥ [८] सूर्योदय होने पर दिन के प्रथम प्रहर के चतुर्थ भाग में भाण्ड—उपकरणों का प्रतिलेखन करके तदनन्तर गुरु को वन्दना करके ९. पुच्छेज्जा पंजलिउडो किं कायव्वं मए इहं?। इच्छं निओइउं भन्ते! वेयावच्चे व सज्झाए। [९] हाथ जोड़कर पूछे—इस समय मुझे क्या करना चाहिए? 'भंते ! मैं चाहता हूँ कि आप मुझे वैयावृत्त्य (सेवा) में नियुक्त करें, अथवा स्वाध्याय में (नियुक्त करें।)' १०. वेयावच्चे निउत्तेणं कायव्वं अगिलायओ। सज्झाए वा निउत्तेणं सव्वदुक्खविमोक्खणे।। [१०] वैयावृत्त्य में नियुक्त किया गया साधक ग्लानिरहित होकर वैयावृत्त्य (सेवा) करे, अथवा समस्त दुःखों से विमुक्त करने वाले स्वाध्याय में नियुक्त किया गया साधक (ग्लानिरहित होकर स्वाध्याय करे।) ११. दिवसस्स चउरो भागे कुजा भिक्खू वियक्खणो। तओ उत्तरगुणे कुज्जा दिणभागेसु चउसु वि॥ [११] विचक्षण भिक्षु दिवस के चार विभाग करे। फिर दिन के उन चार भागों में (स्वाध्याय आदि) उत्तरगुणों की आराधना करे। १२. पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई। तइयाए भिक्खायरियं पुणो चउत्थीए सज्झायं।। १. (क) अच्छणे त्ति आसने, प्रक्रमादाचार्यान्तरादिसन्निसधौ अवस्थाने उप-सामीप्येन, सम्पादनं-गमनं ...... उपसम्पझ्यन्तं कालं भवदन्तिके मयाऽसितव्यमित्येवंरूपा, सा च ज्ञानार्थतादिभेदेन त्रिधा। -बृहद्वृत्ति, पत्र ५३५ (ख) 'उवसंपया य तिविहा नाणे तह दंसणे चरित्ते । दंसणनाणे तिविहा, दुविहा य चरित्त अट्ठाए।। ६९८॥ वत्तणा संधणा चेव, गहणं सुत्तत्थत्तदुभए। वेयावच्चे खमणे, काले आवक्कहाइअ॥६९९।।' -आवश्यकनियुक्ति का
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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