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________________ चउवीसइमं अज्झयणं : पवयणमाया चौवीसवाँ अध्ययन : प्रवचनमाता अष्ट प्रवचनमाताएँ १. अट्ठ पवयणमायाओ समिई गुत्ती तहेव य । पंचैव य समिईओ ओ गुत्तीओ आहिया ॥ [१] समिति और गुप्ति-रूप अष्ट प्रवचन-माताएँ हैं। समितियाँ पांच और गुप्तियाँ तीन कही गई हैं । इरियाभासेसणादाणे उच्चारे समिई इय । २. मत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती य अट्ठमा ॥ [२] ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषपणासमिति, आदानसमिति और उच्चारसमिति (ये पांच समितियाँ हैं) तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति, (ये तीन गुप्तियाँ हैं) । ३. एयाओ अट्ठ समिईओ समासेण वियाहिया । दुवालसंग जिणक्खायं मायं जत्थ उ पवयणं ॥ [३] ये आठ समितियाँ संक्षेप में कही गई हैं, जिनमें जिनेन्द्र-कथित द्वादशागरूप समग्र प्रवचन अन्तर्भूत है। विवेचन—पांच समितियों का स्वरूप — सर्वज्ञवचनानुसार आत्मा की सम्यक् (विवेकपूर्वक) प्रवृत्ति । समितियाँ पांच हैं। उनका स्वरूप इस प्रकार है— ईर्यासमिति — किसी भी प्राणी को क्लेश न हो, इस प्रकार से सावधानीपूर्वक चलना, चर्या करना, उठना, बैठना, सोना, जागना आदि सभी चर्याएँ ईर्यासमिति के अन्तर्गत हैं। भाषामिति — हित, मित, सत्य और सन्देहरहित बोलना, सावधानीपवूक भाषण - सम्भाषण करना । एषणासमिति—संयमयात्रा में आवश्यक निर्दोष भोजन, पानी, वस्त्रादि साधनों का ग्रहण एवं परिभोग करने में सावधानीपूर्वक प्रवृत्ति करना। आदान-निक्षेपसमिति — वस्तुमात्र को भलीभांति देखकर एवं प्रमार्जित करके उठाना (लेना) या रखना । उत्सर्गसमिति—जीवरहित (अचित्त) प्रदेश में देख-भाल कर एवं प्रमार्जित करके अनुपयोगी वस्तुओं का विसर्जन करना । १. तीन गुप्तियों का स्वरूप — योगों (कायिक, वाचिक एवं मानसिक क्रियाओं प्रवृत्तियों) का प्रशस्त (सम्यक् प्रकार से) निग्रह करना गुप्ति है। प्रशस्त निग्रह का अर्थ है— सोच-समझकर श्रद्धापूर्वक स्वीकृत निग्रह । इसका हय फलितार्थ है बुद्धि और श्रद्धापूर्वक मन-वचन-काम को उन्मार्ग से रोकना । गुप्ति तीन प्रकार की है। मनोगुप्ति — दुष्ट विचार, चिन्तन या संकल्प का एवं अच्छे-बुरे मिश्रित संकल्प का त्याग करना और (क) तत्त्वार्थसूत्र (पं. सुखलालजी) पृ. २०८ (ख) उत्तरा प्रियदर्शिनीटीका भा. ३, पृ. ९७३
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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