SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेईसवाँ अध्ययन : केशी-गौतमीय ३८३ ___जं चरति महेसिणो—जिस भूमि को महर्षि-महामुनि सुख से प्राप्त करते हैं। अर्थात्-वीतराग मुनिराज चक्रवर्ती से अधिक सुखभागी होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं। केशी कुमार द्वारा गौतम को अभिवन्दन एवं पंचमहाव्रतधर्म स्वीकार ८५. साहु गोयम! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। _ नमो ते संसयाईय! सव्वसुत्तमहोयही!॥ [८५] हे गौतम! श्रेष्ठ है आपकी प्रज्ञा! आपने मेरा यह संशय भी दूर किया। हे संशयातीत! हे सर्वश्रुत-महोदधि! आपको मेरा नमस्कार है। ८६. एवं तु संसए छिन्ने केसी घोरपरक्कमे। अभिवन्दित्ता सिरसा गोयमं तु महायसं॥ [८६] इस प्रकार संशय निवारण हो जाने पर घोरपराक्रमी केशी कुमारश्रमण ने महायशस्वी गौतम को मस्तक से अभिवन्दना करके ८७. पंचमहव्वयधम्म पडिवज्जइ भावओ। पुरिमस्स पच्छिमंमी मग्गे तत्थ सुहावहे ॥ [८७] पूर्व जिनेश्वर द्वारा अभिमत (-प्रवर्तित तीर्थ से) उस सुखावह अन्तिम (पश्चिम) तीर्थंकर द्वारा प्रवर्तित मार्ग (तीर्थ) में पंचमहाव्रतरूप धर्म को भाव से अंगीकार किया। विवेचन—केशी कुमारश्रमण गौतम से प्रभावित—केशी श्रमण गौतम स्वामी के द्वारा अपनी शंकाओं का समाधान होने से बहुत ही सन्तुष्ट एवं प्रभावित हुए। इसी कारण उन्होंने गौतम को संशयातीत, सर्वसिद्धान्तसमुद्र शब्द से सम्बोधित किया तथा मस्तक झुकाकर वन्दन-नमन किया। साथ ही उन्होंने पहले जो चातुर्यामधर्म ग्रहण किया हुआ था, उसका विलीनीकरण अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर के पंचहाव्रतरूपधर्म में कर दिया, अर्थात् पंचमहाव्रतधर्म को अंगीकार किया।२ पुरिमस्स पच्छिमंमी मग्गे०-(१) पुरिम अर्थात्-पूर्व (आदि) तीर्थंकर के द्वारा अभिमत (प्रवर्तित) उस सुखावह अन्तिम (पश्चिम) तीर्थंकर द्वारा प्रवर्तित मार्ग (तीर्थ) में, अथवा (२) पूर्व (गृहीत चातुर्यामधर्म के) मार्ग से (उस समय गौतम के वचनों से) सुखावह पश्चिममार्ग (भ. महावीर द्वारा प्रवर्तित तीर्थ) में। उपसंहार : दो महामुनियों के समागम की फलश्रुति ८८. केसीगोयमओ निच्चं तम्मि आसि समागमे। सुय सीलसमुक्करिसो महत्थऽत्थविणिच्छओ॥ महर्षयोऽनाबाधं यथा स्यात्तथा, चरन्ति व्रजन्ति सुखेन मुनयः प्राप्नुवन्ति । मुनयो हि चक्रवर्त्यधिकसुखभाजः सन्तो मोक्षं लभन्ते, इति भावः। -उत्तरा. वृत्ति, अ. रा. को भाः ३, पृ. ९६६, २. उत्तरा०वृत्ति, अभिधान रा. कोश भा. ३, पृ. ९६६ ३. (क) उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर, भावनगर) भा. २, पत्र १८८ (ख) उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका भा. ३, पृ. ९६७ (ग) अभि. रा. कोश भा. ३, पृ. ९६६
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy