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________________ ३७८ उत्तराध्ययनसूत्र नौवाँ प्रश्नोत्तर : धर्मरूपी महाद्वीप के सम्बन्ध में ६४. साहु गोयम! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। ___ अन्नो वि संसओ मझं तं मे कहसु गोयमा!॥ [६४] (केशी कुमारश्रमण)—'हे गौतम! आपकी प्रज्ञा प्रशस्त है। आपने मेरा यह सन्देह मिटा दिया, किन्तु मेरे मन में एक और सन्देह है, उसके विषय में भी मुझे कहिए।' ६५. महाउदग-वेगेणं बुज्झमाणण पाणिणं। सरणं गई पइट्ठा य दीवं कं मन्नसी मुणी? [६५] मुनिवर! महान् जलप्रवाह के वेग से बहते (-डूबते) हुए प्राणियों के लिए शरण, गति, प्रतिष्ठा और द्वीप आप किसे मानते हो? । ६६. अत्थि एगो महादीवो वारिमझे महालओ। __महाउदगवेगस्स गई तत्थ न विज्जई॥ [६६] (गणधर गौतम)-जल के मध्य में एक विशाल (लम्बा-चौड़ा महाकाय) महाद्वीप है। वहाँ महान् जलप्रवाह के वेग की गति (प्रवेश) नहीं है। ६७. दीवे य इड के वत्ते? केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी॥ [६७] (केशी कुमारश्रमण)—केशी ने गौतम से (फिर) पूछा—वह (महा) द्वीप आप किसे कहते हैं? केशी के ऐसा पूछने पर गौतम ने यों कहा ६८. जरामरणवेगेणं बुज्झमाणाण पाणिणं। धम्मो दीवो पइट्ठा य गई सरणमुत्तमं॥ [६८] (गणधर गौतम)—जरा और मरण (आदि) के वेग से बहते-डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है तथा उत्तम शरण है। विवेचन–शरण, गति, प्रतिष्ठा और द्वीप-सम्बन्धी प्रश्न का आशय-संसार में जन्म, जरा, मरण आदि रूप जो जलप्रवाह तीव्र गति से प्राणियों को बहाये ले जा रहा है, प्राणी उसमें डूब जाते हैं, तो उन प्राणियों को डूबने से बचाने, बहने से सुरक्षा करने के लिए कौन शरण आदि है? यह केशी श्रमण के प्रश्न का आशय है। शरण का अर्थ यहाँ त्राण देने-रक्षण करने में समर्थ है, गति का अर्थ है-आधारभूमि, प्रतिष्ठा का अर्थ है-स्थिरतापूर्वक टिकाने वाला और द्वीप का अर्थ है-जलमध्यवर्ती उन्नत निवासस्थान । यद्यपि इनके अर्थ पृथक्-पृथक् हैं, तथापि इन चारों में परस्पर कार्य-कारणभावसम्बन्ध है। इन सबका केन्द्रबिन्दु 'द्वीप' है। इसीलिए दूसरी बार केशी कुमार ने केवल 'द्वीप' के सम्बन्ध में ही प्रश्न किया है। १. (क) शरणं-रक्षणक्षमम् गति-आधारभूमि, प्रतिष्ठा-स्थिरावस्थानहेतुम्, द्वीप-निवासस्थानं जलमध्यवर्ती। -उत्तरा. वृत्ति, अ. रा. को. भा. ३, पृ. ९६४-५६, (ख) उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका भा. ३, पृ. ९४९
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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