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तेईसवाँ अध्ययन : केशी-गौतमीय
आवश्यक है, निश्चयनय से नहीं । १
साधुवेष के तीन मुख्य प्रयोजन— शास्त्रकार ने साधुवेष के तीन मुख्य प्रयोजन यहाँ बताए हैं। (१) लोक (गृहस्थवर्ग) की प्रतीति के लिए, क्योंकि साधुवेष तथा उसके केशलोच आदि आचार को देख कर लोगों को प्रतीति हो जाती है कि ये साधु हैं, ये नहीं, अन्यथा पाखण्डी लोग भी अपनी पूजा आदि के लिए 'हम भी साधु हैं, महाव्रती हैं', यों कहने लगेंगे। ऐसा होने पर सच्चे साधुओं - महाव्रतियों के प्रति अप्रतीति हो जाएगी। इसलिए नाना प्रकार के उपकरणों का विधान है। (२) यात्रा - संयमनिर्वाह के लिए भी साधुवेष आवश्यक है । (३) ग्रहणार्थ — अर्थात् कदाचित् चित्त में विप्लव उत्पन्न होने पर या परीषह उत्पन्न होने से, संयम में अरति होने पर 'मैं साधु हूँ, मैंने साधु का वेष पहना है, मैं ऐसा अकृत्य कैसे कर सकता हूँ, इस प्रकार के ज्ञान (ग्रहण) के लिए साधुवेष का प्रयोजन । कहा भी है—'धम्मं रक्खड़ वेसो' वेष (साधुवेष) साधुधर्म की रक्षा करता है । २
तृतीय प्रश्नोत्तर: शत्रुओं पर विजय के सम्बन्ध में
३४.
साहु गोयम ! पन्न ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्न वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ।।
[३४] हे गौतम ! आपकी प्रज्ञा श्रेष्ठ है । आपने मेरा यह संशय दूर कर दिया। मेरा एक और भी संशय है। गौतम ! उस सम्बन्ध में भी मुझे कहिए ।
३५.
अणेगाणं सहस्साणं मज्झे चिट्ठसि गोयमा ! | तेय ते अहिगच्छन्ति कहं ते निज्जिया तुमे ? ।।
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[३५] गौतम! अनेक सहस्र शत्रुओं के बीच में आप खड़े हो । वे आपको जीतने के लिए (आपकी ओर) दौड़ते हैं। (फिर भी) आपने उन शत्रुओं को कैसे जीत लिया?
३६. एगे जिए जिया पंच पंच जिए जिया दस ।
दसहा उ जिणित्ताणं सव्वसत्तू जिणामहं ।।
[३६] ( गणधर गौतम) - एक को जीतने से पांच जीत लिए गए और पांच को जीतने पर दस जीत लिए गए। दसों को जीत कर मैंने सब शत्रुओं को जीत लिया ।
३७. सत्तू य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममब्बवी ।
तओ केसिं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ।।
[३७] (केशी कुमारश्रमण ) - गौतम ! आपने (१-५ - १०) शत्रु किन्हें कहा है ? — इस प्रकार केशी गौतम से पूछा । शी के यह पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा
३८. एगप्पा अजिए सत्तू कसाया इन्दियाणि य ।
ते जिणित्तु जहानायं विहरामि अहं मुणी ! ।।
१-२.(क) अभिधान रा. कोष भा. ३, पृ. ९६२ (ख) उत्तरा प्रियदर्शिनीटीका भा. ३, पृ. ९१५-९१७