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________________ तेविंसइमं अज्झयणं : केसि-गोयमिज्जं तेईसवाँ अध्ययन : केशी-गौतमीय पार्श्व जिन और उनके शिष्य केशी श्रमण : संक्षिप्त परिचय १. जिणे पासे त्ति नामेण अरहा लोगपूइओ। संबुद्धप्पा य सव्वन्नू धम्मतित्थयरे जिणे।। [१] पार्श्व (नाथ) नामक जिन, अर्हन्, लोकपूजित, सम्बुद्धात्मा, सर्वज्ञ, धर्मतीर्थ के प्रवर्तक और रागद्वेषविजेता (वीतराग) थे। २. तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे। केसी कुमार-समणे विज्जा-चरण-पारगे। __ [२] उन लोकप्रदीप भगवान् पार्श्वनाथ के विद्या (ज्ञान) और चरण (चरित्र) में पारगामी एवं महायशस्वी शिष्य 'केशी कुमारश्रमण' थे। ___३. ओहिनाण-सुए बुद्धे सीससंघ-समाउले। गामाणुगामं रीयन्ते सावत्थिं नगरिमागए।। [३] वे अवधिज्ञान और श्रुतसम्पदा (श्रुत ज्ञान) से प्रबुद्ध (तत्त्वज्ञ) थे। वे अपने शिष्यसंघ से समायुक्त हो कर ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए श्रावस्ती नगरी में आए। ४. तिन्दुयं नाम उजाणं तम्मी नगरमण्डले। फासुए सिजसंथारे तत्थ वासमुवागए।। [४] उस नगर के निकट तिन्दुक नामक उद्यान में, जहाँ प्रासुक (जीवरहित) और एषणीय शय्या (आवासस्थान) और संस्तारक (पीठ, फलक-पट्टा, पटिया, आदि आसन) सुलभ थे, वहाँ निवास किया। विवेचन–अरहा-अर्हन् । अर्थ : पूजा के योग्य तीर्थंकर । लोकपूजित–तीनों लोकों के द्वारा पूजित-सेवित।१ संबुद्धप्या सव्वण्णू-संबुद्धात्मा–जिसकी आत्मा सम्यक् प्रकार से तत्त्वज्ञ हो चुकी थी, ऐसा तत्वज्ञ छद्मस्थ भी हो सकता है, इसीलिए दूसरा विशेषण दिया है-सव्वण्णू, अर्थात्-सर्वज्ञ, समस्त लोकालोकस्वरूप के ज्ञाता। १. बृहद्वृत्ति, पत्र ४९८ 'संबुद्धप्पा-तत्त्वावबोधयुक्तात्मा, एवविधच्छद्मस्थोऽपि स्वादत आह-सव्वण्णू-सर्वज्ञः-सकललोकालोकस्वरूपज्ञानसम्पन्नः।' - उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका भा. ३, पृ. ८२०
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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