SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाईसवाँ अध्ययन : रथनेमीय ३४५ वसुदेव आदि का उल्लेख प्रस्तुत अध्ययन में क्यों?—यहाँ रथनेमि से सम्बन्धित वक्तव्यता में वह किसके तीर्थ में हुआ? इस प्रसंग से भगवान् अरिष्टनेमि का तथा उनके विवाह आदि में उपयोगी एवं उपकारी केशव (श्रीकृष्ण) आदि का उनके पूर्व उत्पन्न होने से पहले उल्लेख किया गया है। रायलक्खण संजुए : तीन अर्थ-प्रस्तुत दो गाथाओं में 'राजलक्षणों से युक्त' शब्द प्रथम 'वसुदेव' का विशेषण है और द्वितीय समुद्रविजय का। प्रथम राजलक्षणसम्पन्न के दो अर्थ हैं -(१) सामुद्रिकशास्त्र के अनुसार राजा के हाथ और चरणतल में चक्र, स्वस्तिक, अंकुश आदि लक्षण (चिह्न) होते हैं तथा (२)गुणों की दृष्टि से राजा के लक्षण हैं - धैर्य, गाम्भीर्य, औदार्य, त्याग, सत्य, शौर्य आदि। वसुदेव इन दोनों प्रकार के राजलक्षणों से युक्त थे। द्वितीय राजलक्षणसम्पन्न के प्रथम दो अर्थों के अतिरिक्त एक अर्थ और भी हैछत्र, चामर, सिंहासन आदि राजचिह्नों से सुशोभित।२।। दमीसरे-दमन अर्थात् उपशमन करने वालों के ईश्वर अर्थात् नायक-अग्रणी। अरिष्टनेमि कुमार कौमार्यावस्था से ही अत्यन्त उपशान्त तथा जितेन्द्रिय थे। कुमारावस्था में ही उन्होंने कामवासना का दमन कर लिया था। लक्खणस्सरसंजुओ-(१) स्वर के सुस्वरत्व, गाम्भीर्य, सौन्दर्य आदि लक्षणों से युक्त, (२) अथवा (मध्यमपदलोपी समास से) उक्त लक्षणोपलक्षित स्वर से संयुक्त। अट्ठसहस्सलक्खणधरो-वृषभ, सिंह, श्रीवत्स, शंख, चक्र, गज, समुद्र आदि एक हजार आठ शुभसूचक चक्रादि लक्षणों का धारक। तीर्थंकर और चक्रवर्ती के १००८ लक्षण होते हैं।" राजीमती के साथ वाग्दान, बरात के साथ प्रस्थान ६. वजरिसहसंघयणो समचउरंसी झसोयरो। तस्स राईमई कनं भजं जायइ केसवो॥ [६] वह वज्र-नाराचसंहनन और समुचतुरस्रसंस्थान वाले थे। मछली के उदर जैसा उनका (कोमल) उदर था। राजीमती कन्या को उसकी भार्या बनाने के लिए वासुदेव (केशव) ने (राजा उग्रसेन से) उसकी याचना की। ७. अह सा रायवर-कन्ना सुसीला चारुपेहिणी। सव्वलक्खणसंपन्ना विज्जुसोयामणिप्पभा॥ ___ [७] वह (उग्रसेन) राजा की श्रेष्ठ कन्या सुशीला, चारुप्रेक्षिणी (सुन्दर दृष्टि वाली) तथा समस्त शुभ लक्षणों से सम्पन्न थी, उसके शरीर की प्रभा (-कान्ति) चमकती हुई विद्युत् की प्रभा के समान थी। १. बृहद्वृत्ति, पत्र ४८९ २. (क) राजेव राजा तस्य लक्षणानि चक्रस्वस्तिकांकुशादीनि, त्यागसत्यशौर्यादीनि वा तैः संयुतो-युक्तः। (ख) इह च राजलक्षणसंयुत इत्यत्र राजलक्षणानि-छत्रचामरसिंहासनादीन्यपि गृह्यन्ते। -बृहवृत्ति, पत्र ४८९ ३. दमिन:-उपशमिनस्तेषामीश्वर:-अत्यन्तोपशमवत्तया नायको दमीश्वरः। कौमार एवं क्षतमारवीर्यत्वात्तत्य। - वही, पत्र ४८९ ४. वही, पत्र ४८९ ५. वही, पत्र ४८९
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy