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उत्तराध्ययनसूत्र
संसार की नश्वरता -संसार की प्रत्येक सजीव एवं निर्जीव वस्तु नाशवान् है। फिर जिन नश्वर वस्तुओं, स्वजनों या मनोज्ञ विषयभोगों या भोगसामग्री को मनुष्य जुटाता है, उन पर मोह-ममता करता है, उनके लिए नाना कष्ट उठाता है, उन सबको एक दिन विवश होकर उसे छोड़ना पड़ता है। इसीलिए मृगापुत्र कहता है कि जब इन्हें एक दिन छोड़ कर चले जाना है तो फिर इनके साथ मोह-ममत्वसम्बन्ध ही क्यों बांधा जाए?
____ धर्मकर्ता और अधर्मकर्ता को सपाथेय-अपाथेय की उपमा-१८ से २१ वी गाथा तक बताया गया है कि जो व्यक्ति धर्मरूपी पाथेय लेकर परभव जाता है, वह सुखी होता है, जबकि धर्मरूपी पाथेय लिये बिना ही परभव जाता है, वह धर्माचरण के बदले अनाचार, कदाचार, विषयभोग आदि में रचा-पचा रहकर जीवन पूरा कर देता है। फलतः वह रोग, व्याधि, चिन्ता आदि कष्टों से पीड़ित रहता है।
___ असार को छोड़कर सारभूत की सुरक्षा-बुढ़ापे और मरण से जल रहे असार संसार में से नि:सारभूत शरीर और शरीर से सम्बन्धित सभी पदार्थों का त्याग करके या उनसे विरक्ति-अनासक्ति रखकर एकमात्र आत्मा या आत्मगुणों को सुरक्षित रखना ही मृगापुत्र का आशय है। इस गाथा के द्वारा मृगापुत्र ने धर्माचरण में विलम्ब के प्रति असहिष्णुता प्रकट की है। १
रोग और व्याधि में अन्तर-मूल में शरीर को 'वाहीरोगाण आलए' (व्याधि और रोगों का घर) बताया है, सामान्यतया व्याधि और रोग समानार्थक हैं, किन्तु बृहद्वृत्ति में दोनों का अन्तर बताया गया है। व्याधि का अर्थ है-अत्यन्त बाधा (पीड़ा) के कारणभूत राजयक्ष्मा आदि जैसे कष्टसाध्य रोग और रोग का अर्थ है-ज्वर आदि सामान्य रोग। २ ।
पच्छा-पुरा य चइयव्वे-शरीर नाशवान् है, क्षणभंगुर है, कब यह नष्ट हो जाएगा, इसका कोई ठिकाना नहीं है। वह पहले छूटे या पीछे , एक दिन छूटेगा अवश्य । यदि पहले छूटता है तो अभुक्तभोगावस्था यानी बाल्यावस्था में और पीछे छूटता है तो भुक्तभोगावस्था अर्थात्-बुढ़ापे में छूटता है। अथवा जितनी स्थिति (आयुष्य कर्मदलिक) है, उतनी पूर्ण करके यानी आयुक्षय के पश्चात् अथवा सोपक्रमी आयुष्य हो तो जितनी स्थिति है, उससे पहले ही किसी दुर्घटना आदि के कारण आयुष्य टूट जाता है। निष्कर्ष यह है कि शरीर अनित्य होने से पहले या पीछे कभी भी छोड़ना पड़ेगा, तब फिर इस जीवन (शरीरादि) को विषयों या कषायों आदि में नष्ट न करके धर्माचरण में, आत्मस्वरूपरमण में या रत्नत्रय की आराधना में लगाया जाए यही उचित है। ३
किम्पाकफल-किम्पाक एक वृक्ष होता है, जिसके फल अत्यन्त मधुर, स्वादिष्ट, एवं सुगन्धित होते हैं, किन्तु उसे खाते ही मनुष्य का शरीर विषाक्त हो जाता है और वह मर जाता है।
___ अप्पकम्मे अवेयणे—धर्म पाथेय है। धर्माचरणसहित एवं सावधव्यापाररहित सपाथेय व्यक्ति जब परभव में जाता है, तो उसे सातावेदनरूप सुख का अनुभव होता है। ५ १. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ४५३ से ४५५ तक (ख) उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका भा. ३ पृ. ४७६ से ४८९ तक २. बृहद्वृत्ति, पत्र ४५५ : व्याधय :-अतीव बाधाहेतवः कुष्ठादयो, रोगाः --ज्वरादयः। ३-४. बृहद्वृत्ति, पत्र ४५४ ५. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ४५५ (ख) उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका, भा. ३, पृ. ४८६