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________________ अठारहवाँ अध्ययन : संजयीय २८१ हाथ से वह बांस का दण्ड छीन लिया। उसने न्यायालय में करकण्डू के विरुद्ध अभियोग किया। परन्तु उस अभियोग में करकण्डू की जीत हुई। फैसला सुनाते समय राजा ने करकण्डू से कहा-'अगर तुम इस दण्ड के प्रभाव से राजा बनो तो एक गाँव इस ब्राह्मण को दे देना।' करकण्डू ने स्वीकार किया । किन्तु ब्राह्मण ने अपने जातिभाइयों से कहकर करकण्डू को मार कर उस दण्ड को ले लेने का निश्चय किया । करकण्डू की पालक माता को मालूम पड़ा तो पति-पत्नी दोनों करकण्डू को लेकर उसी समय दूसरे गांव को चल पड़े। वे सब कांचनपुर पहुंचे। रात्रि का समय होने से ये ग्राम के बाहर ही सो गए थे। संयोगवश उस ग्राम का राजा अपुत्र ही मर गया था। इसलिए मंत्रियों ने तत्काल राज्य के पट्टहस्ती की सूंड में माला लेकर नये राजा की खोज के लिए छोड़ दिया। वह हाथी घूमते-घूमते उसी स्थान पर पहुँचा, जहाँ करकण्डू सो रहा था। हाथी ने माला करकण्डू के गले में डाल दी । करकण्डू को राजा बना दिया गया। कुछ ब्राह्मणों ने इस पर आपत्ति उठाई, परन्तु जाज्वल्यमान दण्ड को देखकर सभी हतप्रभ हो गए । राजा करकण्डू के आदेश से वाटधानक निवासी समस्त मातंगों को शुद्ध कर ब्राह्मण बना दिया गया। बांस के दण्ड के विषय में जिस ब्राह्मण से झगड़ा हुआ था, वह ब्राह्मण एक दिन राजा करकण्डू से एक ग्राम की याचना करने लगा। करकण्डू राजा ने चम्पापुरी के दधिवाहन राजा पर पत्र लिखा कि उक्त ब्राह्मण को एक ग्राम दे दिया जाए। परन्तु दधिवाहन वह पत्र देखते ही क्रोध से भड़क उठा और अपमानपूर्वक ब्राह्मण को निकाल दिया। करकण्डू राजा ने जब यह सुना तो वह भी रोष से भड़क उठा और उसने युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया। दोनों ओर के सैनिक चम्पापुरी के युद्धक्षेत्र में आ डटे। घमासान युद्ध होने वाला था। तभी साध्वी पद्मावती ने राजा करकण्डू और राजा दधिवाहन दोनों को समझाया। दोनों के पुत्रपिता होने का रहस्योद्घाटन कर दिया। इससे दोनों में युद्ध के बदले परस्पर प्रेम का वातावरण स्थापित हो गया। राजा दधिवाहन ने हर्षित होकर अपने औरस पुत्र राजा करकण्डू को चम्पापुरी का राज्य सौंप दिया। स्वयं ने मुनि दीक्षा ग्रहण की। करकण्डू राजा ने भी अपनी राजधानी चम्पा को ही बनाया और उक्त ब्राह्मण को उसी राज्य में एक ग्राम दिया। करकण्डू राजा को स्वभाव से गोवंश प्रिय था । इसलिए उसने उत्तम गायें मंगवा कर अपनी गोशाला में रखीं। एक दिन राजा ने अपनी गोशाला में एक श्वेत और तेजस्वी बछड़े को देखा । राजा को वह बहुत ही सुहावना लगा। उसने आदेश दिया कि 'इस बछड़े को इसकी माता (गाय) का पूरा का पूरा दूध पिलाया जाए।' वैसा ही किया गया। इस तरह बढ़ते बढ़ते वह बछड़ा पूरा जवान, बलिष्ठ और पुष्ट सांड हो गया। उसके बहुत वर्षों के बाद एक दिन राजा ने गोशाला का निरीक्षण किया तो उसी (बैल) सांड को एकदम कृश और अस्थिपंजरमात्र तथा दयनीय दशा में देखकर राजा को विचार हुआ कि 'वय, रूप, बल, वैभव और प्रभुत्व आदि सब नश्वर हैं। अतः इन पर मोह करना वृथा है। इसलिए मुझे इन सबसे मोह हटा कर नरजन्म को सफल करना चाहिए।' विरक्त राजा ने राज्य को तृण के समान त्याग दिया और स्वयं जिनशासन में प्रव्रजित हुए। दीक्षा के बाद करकण्डू राजर्षि अप्रतिबद्धविहारी बनकर तपश्चर्या की आराधना करते हुए अन्त में समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गए। वे प्रत्येकबुद्ध सिद्ध हुए । — प्रत्येकबुद्ध : द्विमुखराय - पंचालदेश के काम्पिल्यपुर में जयवर्मा राजा था। उसकी रानी गुणमाला थी। एक दिन आस्थानमण्डप में बैठे हुए राजा ने एक विदेशी दूत से पूछा - 'हमारे राज्य में कौन-सी विशिष्टता नहीं है, जो दूसरे राज्य में है?' दूत ने कहा -' आपके राज्य में चित्रशाला नहीं है।' राजा ने चित्रशिल्पियों को बुलाकर चित्रशाला निर्माण का आदेश दिया। जब चित्रशाला की नींव खोदी जा रही थी,
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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