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________________ अठारहवाँ अध्ययन : संजयीय २७७ महास्वप्न देखे तो महापद्म नामक पुत्र हुआ, दोनों पुत्रों ने कलाचार्य से समग्र कलाएँ सीखीं । वयस्क होने पर महापद्म को अधिक पराक्रमी एवं योग्य समझ कर पद्मोत्तर राजा ने उसे युवराज पद दिया। ___ हस्तिनापुर राज्य के सीमावर्ती राज्य में किला बना कर सिंहबल नामक राजा रहता था। वह बारबार हस्तिनापुर राज्य में लूटपाट करके अपने दुर्ग में घुस जाता था। उस समय महापद्म का मंत्री नमुचि था, जो साधुओं का द्वेषी था। महापद्म ने सिंहबल को पकड़ लाने का उपाय नमुचि से पूछा । नमुचि ने उसको पकड़ लाने का बीड़ा उठाया और शीघ्र ही ससैन्य जाकर सिंहबल के दुर्ग को नष्टभ्रष्ट करके उसे बांध कर ले आया। उसके इस पराक्रम से प्रसन्न होकर यथेष्ट मांगने को कहा। नमुचि ने कहा-मैं यथावसर आपसे माँगूंगा। इसके पश्चात् महापद्म ने दीर्घकाल तक राज्य से बाहर रह कर अनेक पराक्रम के कार्य किये। अन्त में उसके यहाँ चक्रादि रत्न उत्पन्न हुए। तत्पश्चात् भरतक्षेत्र के ६ खण्ड साध लिये। चक्रवर्ती के रूप में उसने अपने माता-पिता के चरणों में नमन किया। माता-पिता उसकी समृद्धि को देख अत्यन्त हर्षित हुए। ___इसी अवसर पर श्रीमुनिसुव्रत भगवान् के शिष्य श्रीसुव्रताचार्य पधारे। उनका वैराग्यपूर्ण प्रवचन सुन कर राजा पद्मोत्तर और उनके ज्येष्ठ पुत्र विष्णुकुमार को संसार से वैराग्य हो गया। राजा पद्मोत्तर ने युवराज महापद्म का राज्याभिषेक करके विष्णुकुमार सहित दीक्षा ग्रहण की। कुछ काल के पश्चात् पद्मोत्तर राजर्षि ने केवलज्ञान प्राप्त किया और विष्णुकुमार मुनि ने उग्र तपश्चर्या से अनेक लब्धियाँ प्राप्त की। एक बार श्रीसुव्रताचार्य अपनी शिष्यमण्डली सहित हस्तिनापुर चातुर्मास के लिये पधारे। नमुचि मंत्री ने पूर्व वैर लेने की दृष्टि से महापद्म चक्री से अपना वरदान मांगा कि मुझे यज्ञ करना है और यज्ञसमाप्ति तक मुझे अपना राज्य दें। महापद्म ने सरलभाव से उसे राज्य सौंप दिया। नवीन राजा को बधाई देने के लिए जैनमुनियों के सिवाय अन्य सब वेष वाले साधु एवं तापस गए। इससे कुपित होकर नमुचि ने आदेश निकाला—'आज से ७ दिन के बाद कोई भी जैन साधु मेरे राज्य में रहेगा तो उसे मृत्युदण्ड दिया जाएगा।' आचार्य ने परस्पर विचारविनिमय करके एक लब्धिधारी मुनि विष्णुकुमार को लाने के लिए भेजा। वे आए। सारी परिस्थिति समझकर विष्णुकुमार आदि मुनियों ने नमुचि को बहुत समझाया, परन्तु वह अपने दुराग्रह पर अड़ा रहा। विष्णुकुमार मुनि ने उससे तीन पैर (कदम) जमीन मांगी। जब नमुचि वचनबद्ध हो गया तो विष्णुकुमार मुनि ने वैक्रियलब्धि का प्रयोग कर अपना शरीर मेरुपर्वत जितना विशाल बना लिया। दुष्ट नमुचि को पृथ्वी पर गिरा कर, अपना एक पैर चुल्लहेमपर्वत पर और दूसरा चरण जम्बूद्वीप की जगती पर रखा, फिर नमुचि से पूछा-कहो, यह तीसरा चरण कहाँ जाए? अपने चरणाघातों से समस्त भूमण्डल को प्रकम्पित करने वाले विष्णुकुमार मुनि के उग्र पराक्रम एवं विराट रूप को देख कर नमुचि ही क्या, सर्व राजपरिवार, देव, दानव आदि भयभीत और क्षुब्ध हो उठे थे। महापद्म चक्रवर्ती ने आकर सविनय वन्दन करके अधम मन्त्री द्वारा श्रमणसंघ की की गई आशातना के लिए क्षमायाचना की। अन्य सुरासुरों एवं राजपरिवार की प्रार्थना से मुनिवर ने अपना विराट् शरीर पूर्ववत् कर लिया। चक्रवर्ती महापद्म ने दुष्ट पापात्मा नमुचि को देशनिकाला दे दिया। विष्णुकुमार मुनि आलोचना और प्रायश्चित्त से आत्मशुद्धि करके तप द्वारा केवलज्ञानी हुए। क्रमशः मुक्त हुए। महापद्म चक्रवर्ती ने चिरकाल तक महान् समृद्धि का उपभोग कर अन्त में राज्य आदि सर्वस्व का
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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