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-अठारहवाँ अध्ययन
संजयीय
अध्ययन-सार * उत्तराध्ययन सूत्र का अठारहवाँ अध्ययन (१) संजयीय अथवा (२) संयतीय है। यह नाम ___ संजय (राजर्षि) अथवा संयति (राजर्षि) के नाम पर से पड़ा है। * इन अध्ययन के पर्वार्द्ध में १८ गाथाओं तक संजय (या संयति) राजा के शिकारी से पंच महाव्रतधारी
निर्ग्रन्थमुनि के रूप में परिवर्तन की कथा अंकित है। काम्पिल्यनगर का राजा संजय अपनी चतुरंगिणी सेना सहित शिकार के लिए वन में चला। सेना ने जंगल के हिरणों को केसर उद्यान को ओर खदेड़ा। फिर घोड़े पर चढ़े हुए राजा ने उन हिरणों को बाणों से बींधना शरू किया। कई घायल होकर गिर पड़े, कई मर गए। राजा लगातार उनका पीछा कर रहा था। कुछ दूर जाने पर राजा ने मरे हुए हिरणों के पास ही लतामण्डप में ध्यानस्थ मुनि को देखा। वह भयभीत हुआ कि हो न हो, ये हिरण मुनि के थे, जिन्हें मैंने मार डाला। मुनि क्रुद्ध हो गए तो क्षणभर में मुझे ही नहीं, लाखों व्यक्तियों को भस्म कर सकते हैं। अत: भयभीत होकर अत्यन्त विनय-भक्तिपूर्वक मुनि से अपराध के लिए क्षमा मांगी। मुनि ने ध्यान खोला और राजा को आश्वस्त करते हुए कहा—राजन् ! मेरी ओर से तुम्हें कोई भय नहीं है, परन्तु तुम भी इन निर्दोष प्राणियों के अभयदाता बनो। फिर तुम जिनके लिए ये और ऐसे घोर कुकृत्य कर रहे हो, उनके दुष्परिणाम भोगते समय कोई भी तुम्हें बचा न सकेगा, न ही शरण देगा। इसके पश्चात् शरीर, यौवन, धन, परिवार एवं संसार की अनित्यता का उपदेश गर्दभालि आचार्य ने दिया, जिसे सुन कर संजय राजा को
विरक्ति हो गई। उसने सर्वस्व त्याग कर जिन-शासन की प्रव्रज्या ले ली। * इसके उत्तरार्द्ध में, जब कि संजय मुनि गीतार्थ, कठोर श्रमणाचारपालक और एकलविहार
प्रतिमाधारक हो गए थे. तब एक क्षत्रिय राजर्षि ने उनके ज्ञान, दर्शन और चारित्र की थाह लेने के लिए उनसे कुछ प्रश्न पूछे। तत्पश्चात् क्षत्रियमुनि ने स्वयं स्वानुभवमूलक कई तथ्य एकान्तवादी क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद एवं अज्ञानवाद के विषय में बताए, अपने पूर्वजन्म की स्मृतियों
का वर्णन किया। * गाथा ३४ से ५१ तक में भगवान् महावीर के जिनशासनसम्मत ज्ञान-क्रियावादसमन्वय रूप सिद्धान्तों
पर चल कर जिन्होंने स्वपरकल्याण किया, उन भरत आदि १६ महान आत्माओं का संक्षेप में प्रतिपादन किया है। इन गाथाओं द्वारा जैन इतिहास की पुरातन कथाओं पर काफी प्रकाश डाला
गया है। * अन्तिम तीन गाथाओं द्वारा क्षत्रियमुनि ने अनेकान्तवादी जिनशासन को स्वीकार करने की प्रेरणा दी है तथा उसके सुपरिणाम के विषय में प्रतिपादन किया है।
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